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________________ 44 में कौन हैं ?' माता ने स्पष्ट किया कि जो अरहन्तदेव के द्वारा वर्णित शास्त्रों को तथा धर्मोपदेश के हितकारक वाक्यों को नहीं सुनते हैं, वे ही बधिर कहलाते हैं । इस संसार में लंगड़े कौन हैं ?' दिक्कुमारियों के इस प्रश्न के उत्तर में माता ने कहा कि जो प्रमादी (आलसी) न तो तीर्थयात्रा करते हैं, न किसी धर्मकार्य में तत्पर होते हैं एवं न मुनियों को नमस्कार करने जाते हैं, वे ही लंगड़े गिने जाते हैं दिक्कुमारियों ने पुनरपि शंका की-'गूंगे कौन हैं ?' माता ने कहा कि जो शास्त्रों के ज्ञाता होते हुए भी अवसर आने पर हित-मित वचन नहीं कहते हैं, वे गंगे कहलाते हैं । दिक्कमारियों ने तब प्रश्न किया-'इस संसार में विवेकी कौन है ?' माता ने समाधान किया कि देव-कदेव, धर्म-अधर्म, पात्र-अपात्र तथा शास्त्र-कुशास्त्र का जो विचार करते हैं, वे ही विवेकी हैं । दिक्कुमारियों ने अब जिज्ञासा की-'इस संसार में अविवेकी कौन हैं ?' माता ने उत्तर दिया कि जो गुरु-कुगुरु, बन्ध-मोक्ष तथा पुण्य-पाप का विचार नहीं करते, वे ही अविवेकी हैं । दिक्कुमारियों ने प्रश्न किया-'धीर-वीर कौन हैं ?' माता ने शंका निवारण कर कहा कि जो मन, इन्द्रिय, काम तथा परीषह-कषाय आदि से परास्त नहीं होते, वे धीर-वीर कहलाते हैं । दिक्कुमारियों ने पुनः आशंका व्यक्त की-'अधीर कौन हैं ?' माता ने उत्तर दिया कि जो कामदेव रूपी योद्धा के द्वारा प्रताड़ित किये जाने पर चारित्ररूपी युद्ध क्षेत्र से तत्काल ही पलायन कर जाते हैं, वे ही अधीर कहलाते हैं । दिक्कुमारियों ने नए संशय का समाधान चाहा-' इस संसार में पूज्य तथा प्रशंसनीय कौन हैं ?' माता ने स्पष्ट किया कि जो घोर परीषह तथा उपसर्गों के आने पर भी ग्रहण किये हुए शुभ चारित्र को नहीं त्यागते, वे ही प्रशंसनीय हैं ॥११०॥ दिक्कुमारियों ने जिज्ञासा की-'इस संसार में निन्द्य कौन हैं ?' माता ने समाधान किया कि जो कामदेव रूपी शत्रु से पीड़ित होकर ग्रहण किये हुए तप, चारित्र तथा संयम आदि को त्याग देते हैं, वे निन्द्य हैं । दिक्कुमारियों ने प्रश्न किया-'रात्रि में जागरण करनेवाले कौन हैं ?' माता ने उत्तर दिया कि जो ज्ञान रूपी सूर्य को हृदय में धारण कर एवं मोह रूपी रात्रि का नाश कर | आत्मा का ध्यान करते हैं, वे ही रात्रि में जागरण करनेवाले कहलाते हैं । दिक्कुमारियों ने पुनरपि शंका व्यक्त की-'निद्रामग्न (सोनेवाले) कौन कहलाते हैं ?' माता ने कहा कि जो मोह रूपी निद्रा के वशीभूत हुए हृदय में विराजमान ज्ञान रूपी सूर्य को नहीं पहचान पाते हैं एवं न आत्मा के ध्यान को ही जानते हैं, वे ही निद्रामग्न कहलाते हैं । दिक्कुमारियों ने नूतन शंका व्यक्त की-'इस संसार में गुणी कौन हैं ?' माता | 944 |१९३
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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