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________________ श्री शां ति ना थ पु रा ण श्री ति ना थ मानो समस्त संसार की विविधरूपेण लक्ष्मी एक स्थान पर ही आकर एकत्र हो गई हो। इस प्रकार वे दिक्कुमारियाँ अत्यन्त तत्परता के संग माता की सेवा कर रही थीं । गर्भ में स्थित जिनेन्द्र भगवान के प्रभाव से माता की शोभा एवं विभूति अत्यधिक बढ़ गई थी । अथानन्तर नवम् मास समीप आने पर वे दिक्कुमारियाँ विशेष काव्यों की चर्चा से गर्भ के भार को धारण करनेवाली उस महादेवी को प्रसन्न करती । निगूढ़ अर्थ (छिपा हुआ अर्थ), क्रिया गुप्त ( जिसमें क्रिया छिपी हो ), बिन्दुच्युत ( जिसमें बिन्दुमात्रा अक्षर कम किया गया हो ), मात्राच्युत, अक्षरच्युत आदि श्लोकों से तथा अन्य कई प्रकार के श्लोकों से वे दिक्कुमारियाँ माता को हर्षित करने लगीं। दिक्कुमारियों ने प्रश्न किया- 'इस संसार में कौन सत्पुरुष शां है ?' माता ने उत्तर दिया कि जो धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष- इन चारों पदार्थों को सिद्ध कर मोक्ष में जाकर विराजमान हुआ है, वही सत्पुरुष या सज्जन है । उसके अतिरिक्त अन्य कोई सज्जन नहीं है । फिर दिक्कुमारियों ने जिज्ञासा की - 'इस संसार में कायर पुरुष कौन है ?" माता ने कहा कि जो प्राणी मनुष्य जन्म प्राप्त कर भी धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष- इन पुरुषार्थों को सिद्ध नहीं करता, वही कायर है, अन्य कोई नहीं। दिक्कुमारियों ने पुनः जिज्ञासा व्यक्त की- कौन से मनुष्य सिंह समान समझे जाते हैं ? उत्तर में माता ने स्पष्ट किया कि जो इन्द्रियों के संग-संग कामदेव रूपी दुर्धर हस्ती को परास्त करते हैं, वे ही मनुष्य सिंह कहलाते हैं, अन्य नहीं । दिक्कुमारियों ने तत्पश्चात् प्रश्न किया- 'इस संसार में नीच पुरुष कौन हैं ?' माता ने उत्तर दिया कि जो मनुष्य सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, सम्यक्चारित्र, धर्म एवं तप को अपना कर भी उन्हें त्याग देते हैं, वे विद्वानों के द्वारा निन्द्य (नीच) कहे जाते हैं। दिक्कुमारियों ने जिज्ञासा की - 'विद्वान कौन हैं ?' माता ने कहा कि जो शास्त्रों का अध्ययन कर पाप, मोह तथा अशुभ कार्य में प्रवृत्ति नहीं करते हैं तथा विषयों में आसक्त नहीं होते हैं, वे ही व्रती विद्वान कहलाते हैं, अन्य नहीं ॥१००॥ दिक्कुमारियों ने पुनः प्रश्न किया- 'इस संसार में मूर्ख कौन हैं ?' माता ने उत्तर दिया कि जो शास्त्रों का ज्ञान रखते हुए एवं उनका मनन करते हुए भी पाप, मोह, इन्द्रियों की आसक्ति एवं कुमार्ग को नहीं त्यागते हैं, वे ही संसार में मूर्ख हैं। दिक्कुमारियों ने तब प्रश्न किया- 'इस संसार में जन्मान्ध कौन ?' इसके उत्तर में माता ने कहा कि जो तीर्थंकर परमदेव, धर्म, गुरु एवं शास्त्रों के दर्शन नहीं करते, वे जन्मान्ध हैं तथा जो कामान्ध हैं, वे विशेषरूप से जन्मान्ध हैं । दिक्कुमारियों ने तदुपरान्त जिज्ञासा की - 'इस संसार में बधिर (बहिरे ). ण पु चढव १९२
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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