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संलग्न हो गईं । कोई देवी प्रसन्न होकर स्वयं दिव्य सुगन्धित द्रव्यों से तथा कुँकम-कज्जल से माता का श्रृंगार करने लगी । हार, कंकण, केयूर आदि विविध आभरणों को प्रसन्नता के साथ पहनाती हुईं कई देवियाँ कल्पलता के समतुल्य सुशोभित हो रही थीं । कल्पलता के सदृश कितनी ही दिक्कुमारियाँ उन्हें रेशमी वस्त्र समर्पण करती थीं एवं कितनी ही उन्हें दिव्य मालाएँ पहनाती थीं। कितनी ही दिक्कुमारियाँ रम्न में अस्व लेकर विशेष यत्न के संग भगवान की माता के सर्वांग की रक्षा करने म सन्नद्ध सवदा प्रस्तुत । थीं ॥८०॥ कितनी ही दिक्कुमारियाँ सुवर्ण एवं रत्नों से निर्मित हुए तथा अनेक व्यक्तियों से परिपूर्ण पुष्पों के पराग से सुवासित आँगन परिष्कृत कर (झाड़) रही थीं। कितनी ही दिक्कुमारियाँ पृथ्वी पर चन्दन के छींटें दे रही थीं एवं कितनी ही सावधान होकर गीले वस्त्र से उसे पोंछ रही थीं। कितनी ही दिक्कुमारियाँ माता के सम्मुख रत्नों के चूर्ण से स्वस्तिक की रचना कर रही थीं एवं कितनी ही कल्पवृक्ष के सुगन्धित पुष्पों की उन्हें भेंट दे रही थीं। कितनी ही दिक्कुमारियाँ गुप्त (अदृश्य) रूप से व्योम में खड़े उच्च स्वर में परामर्श दे रही थीं कि महादेवी की परिचर्या विशेष यत्नपूर्वक करो । कितनी ही दिक्कुमारियाँ उनके गमन (चलने) के समय साथ चलती थीं, जब कि कितनी ही उनके उत्तिष्ठ (खड़े) होने पर उन्हें आसन प्रदान करती थीं एवं उनके बैठ जाने पर उनके चतुर्दिक बैठ जाती थीं। इस प्रकार वे देवागनायें पुण्य सम्पादन करने के निमित्त तीर्थंकर के अनुपमेय गुणों की प्राप्ति की अभिलाषा से गर्भवती (भगवान की माता) की सेवा करती थीं। चारों ओर के अन्धकार को दूर करने के लिए कितनी ही देवांगनाएँ रात्रि में राजभवन के कक्षों में जाज्वल्यमान दीप्तिवान उज्ज्वल मणियों का प्रकाश करती थीं । कितनी ही दिक्कुमारियाँ जलक्रीड़ा करवा कर माता को सुख पहुँचाती थीं, कितनी ही वनक्रीड़ा करवा कर सुख पहुँचाती थीं एवं कितनी ही कथागोष्ठी कर माता को सुख पहुँचाती थीं । कितनी ही दिक्कुमारियों उनके पुत्र के गुणों को प्रगट करनेवाले एवं उनके मन को प्रसन्न करनेवाले अनेक प्रकार के उत्तम एवं मधुर गीतों
१९१ से माता को प्रसन्न करती थीं। कितनी ही दिक्कुमारियाँ श्रेष्ठ गीतों से लयबद्ध वीणा, मृदंग, वंशी आदि वादित्रों से तथा अनेक प्रकार की तुरहियों से माता के चित्त को सन्तुष्ट करती थीं ॥१०॥ कितनी ही
नाएँ विक्रिया ऋद्धि से निष्पादित होनेवाले तथा हावभावों से परिपूर्ण रसीले एवं मनोहर नत्यों से माता को परम सुखी करती थीं । इस प्रकार दिक्कुमारियों के द्वारा की हुई सेवा से माता ऐसी शोभायमान थीं
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