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आयोजन में मग्न हो गए थे । उनकी देवागनाएँ उनके संग थीं तथा समस्त अनुगत देव भी उनके संग थे । इस प्रकार गर्भ-कल्याणक की पूजा करने के लिए वे समस्त देव क्षणभर में ही महाराज विश्वसेन के राजमहल में आ पहुँचे ॥६०॥ उसी प्रकार सूर्य-चन्द्रमा आदि समस्त ज्योतिषी देव भी अपने-अपने परिवार के साथ भगवान की माता के निवास पर आए । इसी प्रकार समस्त व्यन्तर देव भी अपनी विभूति एवं देवियों के साथ प्रसन्न होकर पुण्य सम्पादन करने के लिए भगवान के गर्भ-कल्याणक में आए । उसी प्रकार महान ऋद्धि को धारण करनेवाले भवनवासी देवों के इन्द्र भी अपनी निकायों (भवनवासी देवों) के संग धर्मसाधन करने की अभिलाषा से पृथ्वी पर आए । इस प्रकार महाराज विश्वसेन का निवास देवों से, उनकी सेना, विमानों एवं वाहनों से आप्लावित हुआ आकाश, वन एवं नगर के समतुल्य परिलक्षित हो रहा था । तदनन्तर सम्पूर्ण देवों से परिवेष्टित एवं परमानन्द में निमग्न सौधर्म इन्द्र ने अपनी इन्द्राणी के संग केवल धर्मसाधन करने के लिए अनन्य भक्ति से माता के गर्भ में विराजमान श्री जिनेन्द्रदेव की तीन प्रदक्षिणाएँ दी एवं दैदीप्यमान मुकुट से सुशोभित अपना उत्तम मस्तक झुका कर उनको नमस्कार किया । फिर उसने बहुमूल्य एवं दिव्य-वस्त्राभरणों से भगवान के माता-पिता की पूजा की एवं फिर उनके सम्मुख मनोहर हावभावों से नाटयशास्त्र के क्रम से उत्पन्न आनन्दोत्सव प्रकट करनेवाला 'आनन्द' नाम का उत्तम नाटक प्रस्तुत किया । तदनन्तर अपना कार्य समाप्त कर सौधर्म इन्द्र ने पुण्य सम्पादन करने के निमित्त से भगवान की माता की सेवा में दिक्कुमारियों को नियुक्त किया एवं उत्तम आचरणों के द्वारा महाधर्म का उपार्जन कर वह समस्त देवों के साथ अपने स्थान को लौट गया ॥७०॥ तदनन्तर चारों निकायों के प्रवीण (चतुर) देव अपना-अपना कार्य सम्पादित कर परम आनन्द मनाते हुए एवं प्रसन्न-वदन अपने-अपने इन्द्र तथा देवागनाओं के साथ अनेक प्रकार के भावों से.महती पुण्य सम्पादन कर अपने-अपने स्थान को चले गये । सम्पूर्ण देवों के प्रत्यावर्तन के उपरान्त,भगवान की माता की आज्ञा पालन करनेवाली वे दिक्कुमारी || देवियाँ केवल पुण्य सम्पादन करने के निमित्त से अपने-अपने योग्य सेवा कार्यों द्वारा माता की सेवा-सुश्रुषा करने लगीं । कितनी ही देवियाँ उन्हें ताम्बूल देने लगीं एवं कितनी ही दिक्कुमारियाँ उन्हें स्नान कराने के कार्य पर नियुक्त हुईं। कितनी ही दिक्कुमारियों ने उनका भोजन बनाने का कार्य सँभाल लिया, कितनी ही शैय्यासज्जा में प्रवृत्त हो गईं तथा कितनी ही पुण्य सम्पादन के लिए उनके पग-मर्दन (पैर दबाने) में