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रूपी शत्रुओं को विनष्ट करने के लिए देवियों के द्वारा संशोधित रानी ऐरा के मोक्ष तुल्य दुःख रहित मनोहर दिव्य गर्भ में अवतरित हुए । भगवान श्री शान्तिनाथ के जीव ने धर्म के प्रभाव से मनुष्य भव में भी अनेक प्रकार के सुख भोगे थे एवं स्वर्ग में भी ग्रैवेयक, सर्वार्थसिद्धि आदि विमानों में भी उन्होंने विविध प्रकार के अपार सुख भोगे थे । अनेक इन्द्र उनकी पूजा एवं सेवा करते थे । भगवान श्री शान्तिनाथ अत्यन्त मनोहर थे एवं तीनों ज्ञानों से सुशोभित थे । यही समझ कर बुद्धिमानी को भगवान श्री जिनेन्द्रदेव द्वारा वर्णित पूर्ण धर्म का पालन करते रहना चाहिए । इस संसार में जीवों को धर्म के ही प्रभाव से सुख प्राप्त होता है, धर्म के ही प्रभाव से अनेक भोग एवं गुणों का सागर. स्वर्ग मिलता है, धर्म के ही प्रभाव से शत्र रहित | सु-राज्य मिलता है, धर्म के ही प्रभाव से तीनों लोकों में उत्पन्न होनेवाले वैभव रूपी लक्ष्मी प्राप्त होती है ॥३००॥ धर्म के ही प्रभाव से देवों के द्वारा पूज्य इन्द्र पद प्राप्त होता है । धर्म के ही प्रभाव से चक्रवर्ती पद प्राप्त होता है, जिसकी सेवा बत्तीस सहस्र नृपति किया करते हैं । धर्म के ही प्रभाव से तीनों लोकों के द्वारा पूज्य तीर्थंकर पद प्राप्त होता है एवं धर्म के ही प्रभाव से धार्मिक जन अक्षय सुख प्रदायक मोक्ष में जा विराजमान होते हैं। मोक्ष का साक्षात् कारण मुनियों का उत्तम धर्म भी सम्यग्दर्शन से प्रकट होता है, सम्यकज्ञान से प्रकट होता है । सम्यक्चारित्र से प्रकट होता है, समस्त इन्द्रियों का दमन करने से प्रकट होता है, मन का निग्रह करने से प्रकट होता है एवं आत्मा का ध्यान करने से प्रकट होता है । पात्रों को दान देने से, श्री. जिनेन्द्रदेव की पूजा करने से, परमदेव तीर्थंकर का स्मरण करने से, व्रतों का पालन करने से, प्रोषधोपवास करने से एवं परोपकार करने से स्वर्ग के सुखों का प्रदायक गृहस्थों का धर्म प्रगट होता है । जो जीव मन-वचन-काय के सुख के सागर एकमात्र धर्म का ही पालन करते हैं, वे श्री शान्तिनाथ भगवान के समान स्वर्ग-सुख एवं मनुष्यगति के चरम सुख भोग कर अन्त में मोक्ष प्राप्त करते हैं । इस संसार में धर्म ही स्वर्गों के सुखों का प्रदाता है एवं गुण प्रकट करनेवाला है । इस धर्म का ही आश्रय
१८५ मुनिराज भी लेते हैं, क्योंकि धर्म से ही यह पुरुष संसार रूपी समुद्र से उत्तीर्ण (पार) होता है । इसलिए मैं भी धर्म के लिए ही सर्वदा भगवान श्री शान्तिनाथ को नमस्कार करता हूँ। धर्म के अतिरिक्त अन्य कोई मोक्ष का कारण नहीं है। धर्म की जड़ सम्यग्दर्शन है। इसलिए मैं अपने मन-वचन-काय को धर्म में ही प्रवृत्त करता हूँ । हे धर्म ! इस संसार में अशुभ मोह से मेरी रक्षा कर । भगवान श्री शान्तिनाथ समस्त पापों
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