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आरम्भ रहित कितने ही मुनिगण सर्वदा विराजमान रहते हैं । जिस प्रकार चारित्र मुनियों को फल देता है, उसी प्रकार वहाँ के आम्र आदि ऊँचे-ऊँचे वृक्ष याचकों को उत्तम-उत्तम फल देते हैं। जिस प्रकार मनियों का चरित्र सर्वप्रकारेण तृप्तिदायक होता है, उसी प्रकार वहाँ के धान्य के पके खेत मनुष्यों को मनोवांछित फल देते हैं । वहाँ के ग्रामों में जिनके धवल (सफेद) शिखरों पर ध्वजाएँ फहरा रही हैं, ऐसे गगनचम्बी जिनालय धर्म की खान के सदृश शोभायमान होते हैं । वहाँ पर धर्मात्माजन ही समस्त कर्मों का विनाश करने के लिए स्वर्ग से चय कर जन्म लेते हैं, क्योंकि वहाँ से प्रतिदिन कोई-न-कोई मोक्ष जाता ही रहता है वहाँ के मुनिगण निर्ममत्व की प्राप्ति के लिए एवं भव्य जीवों को धर्मोपदेश देने के लिए प्रत्येक ग्राम, खेट तथा नगर में विहार किया करते हैं । वहाँ पर पुण्यवान, दानी, श्रीजिनदेव की पूजा में तत्पर तथा श्रावकों के आचरण को विभूषित करनेवाले ही गृहस्थ सदैव निवास करते हैं । देवांगनाओं के समतुल्य वहाँ की प्रवीण (चतुर) नारियाँ दान देने में उदार हैं, शील का पालन करनेवाली हैं, धर्म धारण करनेवाली हैं, तथा रूपवती एवं लावण्यवती हैं । श्रेष्ठ नृपति का शासन होने से वहाँ की प्रजा को चोरी आदि कुछ भी हानि का भय नहीं है, वह अपने पुण्य कर्म के उदय से प्राप्त अनेकानेक सुखों को सदैव भोगती रहती है । शुभ कर्म के प्रभाव से वहाँ के प्राणी अनेक प्रकार की लक्ष्मीरूपी समृद्धि से सम्पन्न हैं । वे दान-पुण्य में अहर्निश तत्पर रहते हैं तथा सदैव उत्सव आयोजित करते रहते हैं ॥२००॥ वहाँ पर उत्पन्न हुए कितने ही प्राणी दान के फल से भोगभूमि में उत्पन्न होते हैं तथा कितने ही तपश्चरण के प्रभाव से स्वर्ग में उत्पन्न होते हैं । कितने ही भव्य जीव चारित्र धारण कर तथा कर्म समूह को विनष्ट कर बन्धन रहित हो जाने के कारण मोक्ष में जा विराजमान होते हैं । वहाँ पर तीनों लोकों के द्वारा पूज्य निर्वाण भूमियाँ हैं, जो पुण्य कर्मों को जननी हैं तथा मुनियों के लिए वसतिका के समान हैं । उस देश में केवलज्ञानी भी धर्मवृद्धि है के लिए चतुर्प्रकार संघ को संग लेकर देवों तथा श्रावकों के अनुरोध पर विहार करते हैं । वर्णन करने योग्य उस देश के मध्य भाग में नाभि के सदृश हस्तिनापुरी नामक एक नगरी है, की जो कि स्वर्ग अलकापुरी के समतुल्य शोभायमान है । गगनचुम्बी कोट, सुदीर्घ द्वारों, खाई एवं अटारियों की पक्तियों से युक्त वह नगरी अत्यंत ही शोभायमान है तथा इस प्रकार सुरक्षित है कि कोई भी शत्रु उसकी सीमा का उल्लंघन नहीं कर सकता । राजभवनों के शिखर पर फहराती हुई ध्वजाओं से वह नगरी ऐसी भव्य प्रतीत
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