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लेना चाहिए । जब तक इन्द्रियाँ अपने कार्य में समर्थ हैं, तब तक बुद्धिमानों को तपश्चरण के बल से मुक्ति रूपी रमणी को अपने वश में कर लेना चाहिए । जब तक आयु पूरी न हो जाए, तब तक कठोर तपश्चरण कर लेना चाहिए, क्योंकि भवन में अग्निकांड होने पर तत्काल कूप खनन व्यर्थ ही सिद्ध होगा । जिन्होंने दैहिक सुखों से विरक्त होकर मोक्ष प्राप्त करने के लिए तपश्चरण-चारित्र-व्युत्सर्ग आदि के द्वारा काया को कृश किया, उन्हीं का जन्म धारण करना सफल समझना चाहिए । यही समझ कर
अत्यन्त निस्सार एवं क्षणभंगुर इस काया को प्राप्त कर जहाँ तक हो सके सारभूत तपश्चरण करना चाहिए, | तभी तो यह काया सफलीभूत हो सकती है। बुद्धिमानों को मोक्ष प्राप्त करने के लिए तथा तप-ध्यान आदि
पुण्य कार्य सिद्ध करने के लिए सेवक के समान स्वल्प अन्न-पान आदि प्रदान कर इसकी आकांक्षा पूर्ण करनी चाहिए । इन भोगों से कभी भी तृप्ति नहीं होती, ये काया को कृश करनेवाले हैं, दुष्ट हैं । प्रारंभ में ये मनोहर प्रतीत होते हैं, परन्तु हैं पाप के समुद्र एवं भयानक फल देनेवाले । ये भोग पराधीन हैं, क्षण-क्षण में नष्ट होनेवाले हैं, नरक रूपी आवास में ले जाने के मार्ग को प्रशस्त करनेवाले हैं । केवल पशुओं ने ही इनको स्वीकार किया है । मोक्षगामी मुनियों ने सदा इनकी निन्दा की है । ये भोग धर्म रूपी
नृपति के प्रचण्ड शत्रु हैं, मोक्ष रूपी आवास में प्रवेश के बाधक द्वार हैं, सब प्रकार के दुःखों को उत्पन्न | करनेवाले हैं, प्रचण्ड हैं एवं स्वर्ग रूपी आवास (गृह) को अवरुद्ध करने के लिए अर्गला (बेड़ी साँकल)
के समान हैं । व्याधि, क्लेश, दाह, भय, चिन्ता आदि के ये सागर हैं, क्रूर हैं केवल मूढ़ प्राणी ही इनका | सम्मान करते हैं एवं धीर प्रकृति सज्जन इनका त्याग कर देते हैं ॥२७०॥ ये भोग बड़ी कठिनता से प्राप्त होते हैं. दुःखों से उत्पन्न होते हैं एवं मानभंग आदि दुःख के निमित्त (कारण) हैं, इसलिए इस संसार में ऐसा कौन-सा बुद्धिमान है, जो धर्म को त्याग कर इन भोगों का सेवन करे ? जिस प्रकार तैल के सिंचन से अग्नि उग्रतर एवं प्रचण्ड हो जाती है, उसी प्रकार विकट ज्वाला उत्पन्न करनेवाली कामाग्नि नारियों के सम्पर्क से अत्यधिक तीव्र हो जाती है। जिस प्रकार अग्नि जल से ही शान्त होती है, उसी प्रकार अनेक अनर्थों को उत्पन्न करनेवाली मनुष्यों की कामरूपी अग्नि ब्रह्मचर्य रूपी जल से ही शान्त हो सकती है। मनुष्यों के हृदय में जब तक काम रूपी अग्नि प्रज्वलित रहती है। तब तक उनके हृदय में चारित्र, तप एवं ध्यानरूपी वृक्ष की जड़ किस प्रकार पैठ (जम) सकती है ? मनुष्यों के लिए विषयों से उत्पन्न सुख विष
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