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लगे - 'हे भ्राता ! ध्यानपूर्वक सुनो। मैं इनके पूर्व जन्म की शत्रुता से उत्पन्न होनेवाली इनकी इति कथा कहता हूँ ॥७०॥ इसी जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत की उत्तर दिशा में ऐरावत क्षेत्र है । उसके मनोहर पद्मिनीखेट नामक नगर में सागरसेन नाम का एक वणिक रहता था । उसकी पत्नी का नाम अमितमती था । उनके ' पुत्र थे- धनमित्र तथा नन्दिषेण उनका नाम था । वे बड़े लोभी थे, धन के लालची थे, बड़े क्रूर थे, सदैव द्रव्य प्राप्ति की अभिलाषा रखते थे तथा इसलिए सर्वदा आर्तध्यान से पीड़ित रहते थे । एक दिन वे दोनों ही दुष्ट पुत्र धन क लिए परस्पर लड़ने लगे, दोनों ने एक-दूसरे पर प्रहार किए। दोनों ही सांघातिक रूप से आहत गए तथा तीव्र पीड़ा से व्याकुल हो कर मर गए । वे दोनों ही आर्तध्यान से मरे थे, दोनों ने शां आपस में शत्रुता बाँध रक्खी थी; इसलिए मर कर वे दोनों ही दुःखों से त्रस्त ये पक्षी हुए हैं।' उस गध ति के पीछे एक देव को आते हुए देखकर अनुज दृढ़रथ ने प्रश्न किया- 'हे अग्रज ! यह देव कौन है एवं यहाँ क्यों आया है ?' उत्तर में राजा मेघरथ कहने लगे- 'हे अनुज ! दत्तचित्त होकर सुनो। मैं इसके पूर्व भव की कथा कहता हूँ एवं इसके आने का कारण भी बताता हूँ । कालानन्तर में तुमने विजयार्द्ध पर्वत पर दमितारि के साथ युद्ध करते समय क्रोधपूर्वक राजपुत्र हेमरथ का वध किया था । वह मरकर संसार में परिभ्रमण कर शुभ कर्म के उदय से श्रीजिन चैत्यालयों से सुशोभित कैलाश पर्वत की घाटी में पर्णकान्ता नदी के तट पर निवास करते हुए सोम नामक एक तापस की पत्नी श्रीदत्ता के गर्भ से चन्द्र नाम का पुत्र हुआ था ॥८०॥ कु-शास्त्रों का ज्ञाता तथा कुमार्गगामी वह मूर्ख भोगादिकों की अभिलाषा करता हुआ प्रतिदिन पंचाग्नि तप की साधना करता था । अज्ञानपूर्वक तपस्या कर देहादि का कष्ट सहने के कारण आयु पूर्ण कर वह ज्योतिर्लोक में नीच ज्योतिषी देव हुआ । एक दिन वह देव विनोदपूर्वक चैत्यालयों से सुशोभित तथा महामनोहर ऐशान स्वर्ग के अवलोकनार्थ गया था । वहाँ पर ईशान इन्द्र की सभा में उनके अनुगत देवों ने मेरी प्रशंसा की तथा कहा कि इस समय पृथ्वी पर दान देनेवाला एक मेघरथ ही है । इस समय उसके (मेघरथ) समान अन्य कोई दाता नहीं है, वह (मेघरथ) दान-पुण्य करनेवाला है तथा व्रती है । यह प्रशंसा सुन कर हृदय में ईर्ष्या उत्पन्न होने के कारण मेरी (मेघरथ की ) परीक्षा लेने के लिए वह यहाँ आया है । इसलिये हे अनुज ! अब तू मन लगा कर दानादिक का लक्षण सुन । मैं पात्र दान देने योग्य द्रव्य एवं उसकी विधि आदि कहता हूँ । अनुग्रह या उपकार करने के लिए अपना धन या अन्य कोई पदार्थ
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