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________________ श्री शां ति ना थ पु रा ण थ भगवान की तीन प्रदक्षिणाएँ दीं, उन्हें नमस्कार किया, उन्हें समवशरण में विराजमान किया एवं प्रसन्न होकर मन-वचन-काय की भक्तिपूर्वक उत्तम सामग्री से उनकी पूजा की । तदनन्तर श्री अरहन्तदेव भव्य जीवों को धर्मोपदेश देने के लिए देवों एवं चतुर्विध संघ के संग विहार करने लगे । अथानन्तर- राजा मेघरथ नवीन राज्य लक्ष्मी प्राप्त कर तथा चित्त में धर्म को धारण कर निरन्तर भोग भोगने लगे ॥ २९०॥ राजा मेघरथ सत्पात्रों के लिए भक्तिपूर्वक सदैव स्वर्ग मोक्ष प्रदायक तथा गुणों की खानि चार प्रकार का दान देने लगे । श्री जिन मन्दिर में जा कर वे अनेक प्रकार से समस्त दुःखों का निवारण करनेवाली, समस्त प्रकार के सुख देनेवाली एवं विघ्नों का नाश करनेवाली भगवत्-पूजा करने लगे । इस प्रकार धर्म के प्रभाव से समस्त दुःखों से रहित राजा मेघरथ शत्रु रहित विशाल एवं शक्तिशाली राज्य को प्राप्त कर भ्राताबान्धवों के संग तथा सुन्दरी रानियों के संग सदैव विविध सुख भोग का अनुभव करने लगे । समस्त गुणों का समुद्र, स्वर्ग की सीढ़ी, सर्व सुखों का निधान एवं मुक्ति-रूपी रमणी प्रदान करनेवाले सम्यग्दर्शन का ना राजा मेघरथ पालन करने लगे, जो समस्त दोषों से रहित, पूज्य, अष्ट अंग सहित, उपमा रहित एवं जगत में सार रूप है । यद्यपि मेघरथ तीनों ज्ञानों से विभूषित थे तथापि वैराग्य प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन श्रीगुरुदेव के मुख से श्रेष्ठ-धर्म के स्थान, इन्द्र के द्वारा पूज्य, अशुभ कर्मों का नाश करनेवाले, मोक्ष मार्ग का दिग्दर्शन करने के लिए दीपक के समान अज्ञान रूपी घोर अंधकार का नाश करनेवाले तथा श्री जिनेन्द्रदेव के मुखारविन्द से वर्णित सारभूत शास्त्रों को सुनते थे । राजा मेघरथ स्वर्ग-मोक्ष प्रदायक गृहस्थों के द्वारा सेवन करने योग्य सारभूत श्रेष्ठ पुण्य के द्वारा अतिशय सुख देनेवाले, निर्मल शुद्ध स्वर्ग की विभूति देनेवाले तथा पाप कर्मों का प्रत्यक्ष विनाश करनेवाले द्वादश (बारह) प्रकार के व्रतों को अतिचार रहित सम्यग्दर्शन सहित पालन करते थे । महाराज मेघरथ निर्मल मोक्ष सुख प्राप्त करने के लिए पर्व के दिनों में गृहस्थी के समस्त कार्यों को त्याग कर अशुभ कर्मों का निवारण करनेवाले तथा सुख उत्पन्न करनेवाले प्रोषधोपवास सर्वदा करते थे । इसी प्रकार मोक्ष प्राप्त करने के लिए राजा मेघरथ उत्तम सामग्री से देव - शास्त्र - गुरु की भक्तिपूर्वक मनोयोग से पूजा करते थे, समस्त कर्तव्यों का पालन करनेवाले धर्मात्माओं की पूजा करते थे तथा उनकी वन्दना करते थे । राजा मेघरथ मोक्ष सुख प्राप्त करने की अभिलाषा से आग्रहपूर्वक व्रत- दान आदि के द्वारा समस्त सुखों के सागर तथा दोष-भय-शोक आदि समस्त दुःखों का श्री शां पु रा ण १४५
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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