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________________ श्री शां ना थ तथा भक्तिपूर्वक कहा- 'हे धराधीश ! आप धन्य हैं, श्रेष्ठ ज्ञान तथा गुण से शोभायमान हैं। हे देव ! आप के ही प्रसाद से हम तिर्यन्च योनि को छेद कर अत्यन्त सुखी तथा दिव्य देह के धार देव हुए हैं। हम केवल यही प्रत्युपकार करना चाहते हैं कि आप को मानुषोत्तर पर्वत के भीतर की समग्र रचना (संसार) का दर्शन करवा दें।' इस प्रकार निवेदन कर वे दोनों देव उनकी आज्ञा की प्रतीक्षा में भक्तिपूर्वक खड़े रहे । तब कुमार मेघरथ ने उन दोनों की विनय को स्वीकार किया । उनकी सहमति प्राप्त कर दोनों देवों ने अनेक प्रकार की ऋद्धियों से शोभायमान एक विमान बनाया । उन्होंने उस विमान में अन्य श्रेष्ठ व्यक्तियों के संग देवोपम राजकुमार मेघरथ को बैठाया । उन्होंने उस विमान को ज्योतिषी देवों से विभूषित व्योम (आकाश) मार्ग में पहुँचाया, तत्पश्चात् वे दोनों देव राजकुमार मेघरथ को समग्र लोकालोक ति सविस्तार दिखलाने लगे । उन्होंने कहा- 'हे देव ! देखिए, षट (छः) कालों से शोभायमान यह पहला भरतक्षेत्र है तथा यह जघन्य भोगभूमि का सुख देनेवाला हिमवतक्षेत्र है । उसके उपरान्त मध्य भोगभूमि के सुख देनेवाला यह हरिवर्ष क्षेत्र है एवं धर्म, तीर्थंकर, गणधर आदि से संयुक्त ( भरा हुआ ) यह विदेहक्षेत्र है । जीवों को पात्र दान का फल भोगोपभोग सामग्री को देनेवाला यह पाँचवाँ सम्यकक्षेत्र है एवं यह दश प्रकार के कल्पवृक्षों से सुशोभित हैरण्यवतक्षेत्र है । यह भरत के समान ऐरावतक्षेत्र है- 'हे देव ! मेरु सहित सप्त पर्वतों द्वारा विभाजित किये हुए ये सप्त क्षेत्र हैं ॥ २००॥ श्री जिनेन्द्र देव के जिनालय से सुशोभित यह हिमवान पर्वत है । यह ऊँचा महाहिमवान पर्वत है एवं यह सुन्दर निषिध पर्वत है । यह दिव्य सुमेरु पर्वत है, जो चतुर्दिक वनों से शोभायमान है, देव भी जिसकी सेवा करते हैं, जो षोडश ( सोलह ) चैत्यालयों से विभूषित है तथा जिनेन्द्र भगवान के अभिषेक यहाँ करने से पवित्र है । यह नील पर्वत है, यह रुक्मी है तथा यह शिखरी है- ये छः प्रसिद्ध कुल पर्वत हैं । इनके पूर्व कूट पर भगवान श्री जिनेन्द्र देव के चैत्यालय है । जो अपनी कान्ति से सुशोभित हैं । इधर देखिए, ये समुद्र में मिलन हेतु तीव्र गति से चतुर्दश (चौदह) सुन्दर महानदियाँ हैं, जो द्वार तथा वेदिका से शोभायमान हैं, नित्य हैं, जल से भरी हैं, बहुत चौड़ी हैं, शीतल हैं, दिव्य हैं, इनके दोनों तटों ( किनारों) पर वन हैं; ये पद्म, महापद्म आदि सरोवरों से निकली हैं तथा अनेक सहायक नदियाँ आकर इनमें मिलती हैं । गंगा, सिन्धु, रोहित, रोहितास्या, हरित, हरिकान्ता, सीता, सीतोदा, नारी, नरकान्ता, महानदी, सुवर्णकूला, रूत्यकूला, रक्ता, ण पु रा ण श्री शां ति ना थ पु रा १३९
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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