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________________ . EF सम्यग्दर्शन की विशुद्धि के साथ-साथ सोलह कारण भावनाओं का चिन्तवन कर तीर्थंकर नामकर्म (प्रकति) का बन्ध कर किया। उन्होंने अपनी शक्ति को प्रगट कर जीवन पर्यन्त विधिपूर्वक उत्तम संयम का पालन किया ॥१६०॥ आयु के अन्त समय में चारों प्रकार के आहार का त्याग किया, संन्यास धारण किया, चारों पवित्र आराधनाओं का आराधन किया, बिना किसी संकल्प-विकल्प के अपना चित्त पंच-परमेष्ठी के चरण कमलों में लगाया एवं सर्वप्रकारेण प्रयत्न के संग समाधिपूर्वक प्राणों का त्याग कर असंख्यात सुखों के सागर 'अच्युत' नाम के सोलहवें शुभ स्वर्ग में वे तीनों ही तपश्चरण के प्रभाव से महान ऋद्धि के धारी देव हुए । वहाँ पर धर्म के प्रभाव से उन्होंने अपनी देवियों के संग बाईस सागर पर्यंत उपमा रहित स्वर्ग के अपार सुख प्रदायक उत्तम भोगों का आनन्द लिया एवं तदुपरान्त शेष पुण्य कर्म के उदय से आयु के अन्त में वहाँ से च्युत होकर तुम दोनों यहाँ राजपुत्र के रूप में उत्पन्न हुए हो ।' इस प्रकार मुनिराज के वचनों को सुन कर दोनों को बहुत सन्तोष हुआ एवं देवों के द्वारा भी पूज्य उन मुनिराज को भक्तिपूर्वक नमस्कार कर पुनः जिज्ञासा करने लगे-'हे प्रभो ! हमारे पूर्व जन्म के पिता अभयघोष कहाँ उत्पन्न हुए हैं ? कृपा कर यह भी बतला दीजिए।' इसके उत्तर में शान्त परिणामों को धारण करनेवाले वे मुनिराज अनुग्रह कर उन दोनों की समग्र शंकाओं का निवारण करने के लिए मधुर वचन में कहने लगे-'हे विद्याधरों ! मैं तुम्हारे पिता का तीर्थंकर बननेवाला वृत्तान्त कहता हूँ, उसे ध्यानपूर्वक सुनो । मनुष्य समुदायों से परिपूर्ण इस जम्बूद्वीप में धर्म का स्थान अभूतपूर्व विदेहक्षेत्र है, उसकी पुष्कलावती देश में पुण्डरीकिणी नगरी है ॥१७०॥ उसमें पुण्य कर्म के उदय से हेमांगद नाम का राजा राज्य करता था एवं दरा रानी का नाम मेघमालिनी था । अभयघोष का जीव सोलहवें स्वर्ग में वचनातीत सुखों का अनुभव कर आयु के अन्त में वहाँ से चर कर हेमांगद-मेघमालिनी के यहाँ तीनों लोकों का हित करनेवाले घनरथ नाम के तीर्थंकर की पर्याय में उत्पन्न हुआ है । इस समय वे राजा घनरथ अपनी रानियों एवं पुत्रों के द्वारा दो कुक्कुटों की युद्ध-क्रीड़ा अवलोकन में तल्लीन हैं ।' इन वृत्तान्तों को सुन कर दोनों विद्याधरों ने उन मुनिराज को नमस्कार कर प्रस्थान किया । मेघरथ ने पुनः कहा कि पूर्व जन्म के स्नेह के कारण ही ये दोनों विद्याधर आप के दर्शनों की अभिलाषा से यहाँ आये हैं । इस प्रकार मेघरथ से आद्योपान्त पूर्वजन्मों की समग्र कथा को सुन कर दोनों विद्याधरों ने तीर्थंकर भगवान घनरथ को एवं P?FF 44 १३७
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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