________________
किया एवं मोक्ष प्राप्त करने के लिए दोनों पुत्रों के साथ एकाग्र चित्त से समस्त कर्म रूपी तृण को विदग्ध करने के लिए अग्नि के समान प्रखर संयम धारण किया । तदनन्तर वे तीनों ही मुनिराज स्वर्ग-मोक्ष रूपी लक्ष्मी के चित्त को मोहित करनेवाले द्वादश प्रकार का घोर तपश्चरण करने लगे । मुनिराज अभयघोष ने सम्यग्दर्शन की विशुद्धि धारण की एवं तीर्थंकर पद का बंध करानेवाली षोडश कारण भावनाओं का चिन्तवन किया । पहली भावना सम्यग्दर्शन की विशुद्धि है, दूसरी भावना मन-वचन-काय से मुनियों की विनय है, तीसरी भावना व्रत एवं शीलों का अतिचार-रहित पालन करने की है, चौथी भावना अपना उपयोग सदा ज्ञानमय बनाये रखने का है, संसार एवं शरीर आदि से ग्लानि प्रगट करनेवाली संवेग रूपी भावना पाँचवीं है, शक्ति के अनुसार चारों प्रकार के दान देने की भावना छटठी है, शक्ति के अनुसार बारह प्रकार के तपश्चरण करने की भावना सातवीं है, आठवीं भावना धर्मध्यान एवं शुक्लध्यान को प्रकट करनेवाली साधु समाधि की है, दश प्रकार के मुनियों की सेवा-सुश्रुषा द्वारा वैयावृत्य करना नवमी भावना है, स्वर्ग-मोक्ष प्रदायक श्री अरहन्त देव की भक्ति करना दसवीं भावना है, आचार्य की भक्ति करना ग्यारहवीं भावना है, मोक्ष मार्ग दिग्दर्शक उपाध्याय की भक्ति करना बारहवीं भावना है, शास्त्रों में भक्ति । रखना तेरहवीं भावना है, षट आवश्यकों का पूर्ण रीति से पालन चौदहवीं भावना है, जैन धर्म के माहात्म्य को प्रगट करनेवाली मार्ग-प्रभावना पन्द्रहवीं भावना है एवं सब गुणों की खानि के समान साधर्मियों से वात्सल्य रखना सोलहवीं भावना है ॥१५०॥ सम्यग्दर्शन के प्रभाव से बुद्धिमान पुरुषों को तीर्थंकर प्रकृतियों || रा का बन्ध करानेवाली ये उपरोक्त वर्णित सोलह कारण भावनायें हैं । तीर्थंकर जो अब तक हो चुके हैं अथवा जो अभी वर्तमान में हैं एवं जो आगे भविष्य में होंगे, वे सब इन्हीं भावनाओं का चिन्तवन कर ही हुए थे, हुए हैं एवं इसी प्रकार आगे होंगे । यदि केवल सम्यग्दर्शन की विशुद्धि ही प्राप्त हो जाये, तो बलवती भावना तीर्थंकर नामकर्म का बन्ध कराती है । सम्यग्दर्शन की विशुद्धि के बिना मनुष्यों को कभी भी तीर्थंकर नामकर्म का बन्ध नहीं होता । अल्प शक्तिवाला जीव भी सम्यग्दर्शन से सुशोभित होकर इन भावनाओं के प्रभाव से तीर्थंकर हो जाता है एवं सब कर्मों से रहित होकर सिद्ध पद प्राप्त करता है, इसमें कोई सन्देह नहीं । इसलिये चारों प्रकार के संघ को मोक्ष रूपी रमणी.प्राप्त करने के लिए उसकी सखी के समान इन भावनाओं का चिन्तवन प्रतिदिन करना चाहिये । अभयघोष मुनिराज ने एकाग्रचित्त से
FFFFF
|१३६