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विवाह करने की चिन्ता हुई । उन्होंने ज्येष्ठ पुत्र मेघरथ का विवाह प्रियमित्रा तथा मनोरमा के साथ कर दिया तथा कनिष्ठ पुत्र दृढ़रथ का विवाह सुमति के साथ कर दिया था । मेघरथ की रूपवती तथा गुणवती रानी प्रियमित्रा के गर्भ से शुभ लक्षणोंवाला नन्दिवर्धन नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । दृढ़रथ की सौभाग्यवती रानी सुमति के गर्भ से अनेक गुणों से सुशोभित बरसेन नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । इस प्रकार घनरथ तीर्थंकर पुत्र-पौत्र आदि से वेष्टित होकर सब प्रकार की सुख-सामग्रियों का उपभोग करते हुए सिंहासन पर विराजमान होकर इन्द्र की-सी लीला रचते थे ७०॥ एक दिन प्रियमित्रा की दासी सुषेणा घनकुण्ड नामक एक कुक्कुट (मुर्गे) को ले कर आई तथा सब को दिखला कर कहने लगी-'जिसका कुक्कुट हमारे कुक्कुट को परजित कर देगा, उसे एक सहस्र (हजार) मुदाएँ मिलेंगी।' सुषेणा की यह गर्वोक्ति सुन कर छोटी रानी की दासी काँचना घनकुण्ड कुक्कुट से लड़ाने के लिए वज्रतुण्ड नामक कुक्कुट को ले आई। ऐसे निरीह जीवों के परस्पर लड़ने से दोनों को दुःख होता है, दर्शकों को भी हिंसा में आनन्द मानने से रौद्र ध्यान का बंध होता है । रौद्र ध्यान महापाप का कारण है, पाप से नरक मिलता है तथा नरक में दुःख सहना पड़ता है । इसलिए धर्मात्मागण की ऐसा युद्ध देखना भी अयोग्य है। इसी नीति का स्मरण । करते हुए घनरथ तीर्थंकर भव्य जीवों को समझाने के लिए तथा अपने पुत्र की महिमा प्रगट करने के लिए अपने पुत्र-पौत्रादिकों के संग बिना इच्छा के उन दोनों कुक्कुटों के युद्ध को देख रहे थे । वे दोनों ही कुक्कुट पूर्व जन्म की शत्रुता के कारण परस्पर क्रोधपूर्वक अचरज (आश्चर्य) उत्पन्न करानेवाला तथा घोर दुःख देनेवाला घोर युद्ध करने लगे। इसी बीच में घनरथ तीर्थंकर ने अपने पुत्र मेघरथ से जिज्ञासा की-'इन दोनों का युद्ध क्यों हो रहा है ? क्या पूर्व जन्म की शत्रुता इसका कारण है ?' पिता का यह प्रश्न सुन कर अवधिज्ञानी मेघरथ सर्व जीवों का हित करनेवाली तथा कर्णों को सुख प्रदान करनेवाली मधुर वाणी में कहने लगे ॥४०॥ 'हे आत्मीयजनों ! अपने चित्त को स्थिर कर सुनो । मैं इन दोनों के पूर्व जन्म की शत्रुता की कथा कहता हूँ । इसी जम्बूद्वीप के ऐरावत क्षेत्र के रत्नपुर नगर में दो भ्राता थे । वे थे तो वैश्य, परन्तु निरक्षर (मूर्ख ) थे; अतः गाड़ीवान का काम करते थे, भद्र तथा धन उनका नाम था । एक दिन वे दोनों निर्दयी भ्राता लोभ में पड़ कर एक वृषभ (बैल) के लिए आपस में लड़ने लगे । वे दोनों ही पापी श्रीनदी के तट पर लड़ने लगे तथा एक-दूसरे को प्रबल आघात पहुँचाने लगे । परस्पर प्रहारों की असह्य
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