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________________ Fb FFF एक अन्य रानी मनोरमा के गर्भ से सहस्रायुध का जीव ग्रैवेयक से चय कर पुण्य कर्म के उदय से दृढ़रथ नाम का पुत्र हुआ था । पुत्र जन्म से प्रसन्न होकर उनके पिता ने समग्र स्वजन-बान्धवों के साथ बड़े उत्सव से उन दोनों की आराधनादि समस्त क्रियायें की थीं। उन दोनों ने जन्म के समय अपने परिवार के साथ जिनालय में जाकर अतुल विभूति के साथ भगवान का महाभिषेक किया एवं उनकी वृद्धि के लिए भगवान की पूजा की थी। उन दोनों के जन्मोत्सव में स्वजनों-बान्धवों ने याचक भिक्षुओं को दान द्वारा सन्तुष्ट किया । उन दोनों ही भ्राताओं का अमृत के समतुल्य दुग्ध-मिश्री आदि पदार्थों के द्वारा पालन-पोषण एवं उनके योग्य वस्त्र-आभूषण द्वारा श्रृंगार किया जाता था । इसलिए वे चन्द्रमा के समान बढ़ने लगे थे । वे दोनों ही भ्राता बाल्यावस्था के कौतुकों द्वारा माता-पिता को आनन्दित करते थे एवं कुमार अवस्था को प्राप्त कर समस्त परिवार के प्रिय हो गए। उन दोनों भ्राताओं ने अल्पकाल में ही राजनीति, शस्त्र-संचालन एवं जैन-सिद्धान्त का रहस्य हृदयगम कर लिया था। वे दोनों ही भ्राता पुण्य कर्म के उदय से अनुक्रम से यौवन, सद्गुण, लक्ष्मी, कला, बुद्धि एवं कान्ति से एक संग विभूषित हो गए थे । उन दोनों के मस्तक रत्नजटित मुकुटों से शोभायमान थे, हृदय (वक्षस्थल) माला एवं दिव्य हार से शोभायमान था एवं कर्ण (कान) कुण्डलों से शोभायमान थे । वे दोनों ही भ्राता केयूर, अंगद, श्रेष्ठ आभूषण एवं सुन्दर दिव्य वस्त्रों से शोभायमान थे एवं नागकुमार देवों के सदृश प्रतीत होते थे ॥६०॥ वे दोनों ही भाई धीर-वीर थे, शुभ लक्षणों से सुशोभित थे, सब कलाओं से परिपूर्ण थे, विद्वान थे, सर्वजन प्रिय तथा मान्य थे, प्रसिद्ध थे एवं निर्मल हृदयवाले थे । उनका यश समग्र संसार में व्याप्त हो रहा थीं। वे राजनीति की प्रवृत्ति करनेवाले || थे, प्रतापी थे, चतुर थे एवं उनकी काया दिव्य कान्ति से सुशोभित थी। वे दोनों ही भ्राता न्याय मार्ग में लीन थे, पूज्य थे, दानी थे, गुणी थे, श्री जिनेन्द्रदेव के चरण कमलों के भक्त थे एवं निर्ग्रन्थ गुरुओं के सेवक थे । वे दोनों ही भाई सुशील थे, धर्मात्मा थे, विद्या एवं विनय में पारगामी थे । अनेक नृपति उनकी सेवा करते थे, इसलिए वे इन्द्र-प्रतीन्द्र के समान सुशोभित होते थे। पूर्व भवों का निरूपण करनेवाला तथा तत्वों को प्रत्यक्ष प्रगट करनेवाला अनुगामी अवधिज्ञान (प्रैवेयक के समान आया हुआ) केवल मेघरथ के ही था (दृढ़रथ के नहीं था)। वे दोनों ही भ्राता यौवन अवस्था को प्राप्त हो गए थे तथा उन्हें अन्य समग्र ऐश्वर्य भी प्राप्त हो गए थे, इसलिए मदोन्मत्त गजराजों के समान उनको देखा घनरथ तीर्थंकर को उनके 444444. १३०
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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