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के प्रभाव से ईशान स्वर्ग में बड़ी ऋद्धि को धारण करनेवाला देव हुआ । उसकी एक सागर की आय थी, वहाँ पर देवांगनाओं के साथ सुख भोगता था एवं अनेक प्रकार की क्रीड़ा करता था । वह देव स्वर्गलोक, मनुष्यलोक एवं तिर्यन्चलोक स्थित अतिशय युक्त जिन प्रतिमाओं की पूजा बड़ी विभूति के साथ किया करता था । अथानन्तर-इसी जम्बूद्वीप के सुकच्छ देश में शिखरों पर विद्याधरों के भवनों से शोभायमान विजयार्द्ध पर्वत श्रेणी है । उसकी उत्तर श्रेणी के काँचनतिलक नगर में पुण्य कर्म उदय से महेन्द्रविक्रम नामक विद्याधर राज्य करता था। उसकी आनन्द प्रदायिनी रानी का नाम अनलवेगा था । वह देव ईशान स्वर्ग से चय कर उन दोनों के यहाँ अजितसेन नाम का पुत्र हुआ ॥५०॥ इधर राजपुत्र नलिनकेतु को भी उल्कापात देख कर आत्मज्ञान उदित हुआ एवं काल-लब्धि प्राप्त होने पर उसे संवेग हुआ । उसने पहिले जो दुश्चारित्र का पालन किया था, उसकी वह निन्दा करने लगा एवं हृदय में परस्त्री सेवन के त्याग का संकल्प कर अपने पाप पर पश्चात्ताप करने लगा। वह विचार करने लगा-'मैं बड़ा पापी हूँ, परस्त्री भोगी हूँ, लम्पट हूँ, अधम हूँ, विषयान्ध हूँ एवं अनगिनत अन्याय करनेवाला हूँ । नारियों की काया में भला उत्तम है ही क्या ? वह चर्म (चमड़ी), अस्थि (हड्डी) एवं आंतड़ियों का संग्रह है; संसार में जितने विकृत पदार्थ हैं, उन सब का आधार है एवं विष्टा आदि दुर्गन्धमय वस्तुओं का आगार है । वह सप्त धातुओं से बनी हुई है, निन्द्य है, दुर्गन्धमय है, घृणा करने योग्य है एवं उसके नव (नौ) छिद्रों से सदैव मल-मूत्र आदि बहा करते हैं । यह केवल बाहर से गोरे चमड़े से ढंकी हुई है एवं ऊपर से वस्त्र-आभूषणों से सुशोभित है । यह किंपाक फल नामक विष फल के समान है, अन्त में यह बहुत ही दुःख देनेवाली है । नारियों की काया कोटि-कोटि कीड़ों से भरी हुई है एवं विष के समान है । संसार में भला ऐसा कौन-सा ज्ञानी पुरुष है, जो इसका सेवन करे ? कोई ज्ञानी होकर भी यदि इसका सेवन करे, तो समझना चाहिए कि उसकी मति (बुद्धि) ही भ्रष्ट हो गई है । यह नारी तो नरक रूपी गृह का द्वार है, टिमटिमाता दीपक है एवं स्वर्ग-मोक्ष रूपी ग्रह की प्राप्ति के लिए बड़ा भारी बाधा है । यह नारी समस्त पापों की खानि है । चन्चल हृदयवाली यह नारी धर्मरत्नों के भण्डार को चुराने के लिए चोर है, यह पापिनी मनुष्यों को भक्षण करने के लिए 'दृष्टिविष' (जिसको देख ले, वहीं मर जाए) सर्पिणी के समान है । ये मूढ़ मनुष्य नारियों के समागम से नरक प्रदायक एवं अनेक जीवों को नष्ट करनेवाले पापों का प्रतिदिन व्यर्थ ही उपार्जन किया
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