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________________ किया है। ऐसे श्री शान्तिनाथ भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ। संसार में श्री शान्तिनाथ से ही धर्म की प्रवृत्ति होती है, श्री शान्तिनाथ का सुख ही निर्दोष है । चक्रवर्ती, कामदेव तथा तीर्थकर की विभूति भी श्री शान्तिनाथ में ही विराजमान है। श्री शान्तिनाथ भगवान हम समस्त प्राणियों का सदैव कल्याण करें। ___ श्री शान्तिनाथ पुराण में अनन्तवीर्य को सम्यक्त्व की प्राप्ति और वज्रायुध चक्रवर्ती का भव-वर्णन नामक आठवाँ अधिकार समाप्त ॥८॥ नौ वाँ अधिकार भगवान श्री शान्तिनाथ जो शान्ति प्रदान करनेवाले हैं सर्वज्ञ हैं, सुख के सागर हैं तथा जिनाधीश हैं, उनका परम पद प्राप्त करने के लिए मैं उनको मस्तक नवाकर सदैव नमस्कार करता हूँ ॥१॥ अथानन्तर-एक दिन सम्राट वज्रायुध जब राजसभा में सिंहासन पर विराजमान थे तथा उन पर चमर (चँवर ) ढुल रहे थे, तो वे इन्द्र के सदृश प्रतीत हो रहे थे । उसी समय एक विद्याधर भय से घबराया हुआ | दौडा-दौड़ा आया तथा अपनी रक्षा के लिए चक्रवर्ती से शरण देने की प्रार्थना की। उसके पीछे-पीछे सभा | भवन को कम्पायमान करती हुई एक विद्याधरी आई । क्रोधरूपी अग्नि से वह विदग्ध हो रही थी तथा कर (हाथ) में मुक्त खड्ग (नंगी तलवार) लिए हुए विद्याधर को मारना चाहती थी। उस विद्याधरी के पीछे-पीछे एक वृद्ध विद्याधर भी चला आया था, जिसके हाथ में गदा थी एवं वह उन दोनों के बैर का कारण जानता था । वह वृद्ध विद्याधर सम्राट का अभिवादन कर कहने लगा-'हे स्वामिन ! आप दुष्टों का निग्रह करने एवं सज्जनों का पालन करने में सर्वदा तत्पर रहते हैं । दुष्टों का निग्रह करना एवं सज्जनों का प्रतिपालन करना क्षत्रियों का धर्म है एवं उस धर्म का आप सदैव पालन किया करते हैं। इसलिए आप जैसे धर्मात्मा को इस विद्याधर का निग्रह अवश्य करना चाहिए, क्योंकि यह विद्याधर अन्याय का पक्षपाती है एवं घोर पापी है, इसलिए यह अवश्य निग्रह (वध) करने योग्य है । यदि आपको इसके अपराध का वृत्तांत सुनने को भी इच्छा हो, तो हे देव ! मैं कहता हूँ कि आप ध्यानपूर्वक सुनिए । यह जम्बूद्वीप धर्म का स्थान है तथा देव, विद्याधर एवं मनुष्यों से परिपूर्ण है । इसमें कच्छ नामक एक मनोहर देश है जिसमें Fb EF १०७
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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