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________________ में पदाति सैन्य की, सेवकों की, श्रेष्ठ रत्नों की तथा ऋद्धियों की गणना भला कौन कर सकता था? वे सम्राट वज्रायुध दश प्रकार के भोगोपभोग की सामग्री के भोग द्वारा मानो अज्ञानी प्राणियों को प्रदर्शित रहे थे कि पुण्य का साक्षात् फल कैसा होता है ? इस प्रकार महाराज वज्रायुध अपने पुण्य-प्रताप (कर्म) के उदय से कुटुम्ब-परिवार के साथ तथा चक्रवती की लक्ष्मी (वैभव) से उत्पन्न होनेवाले अनेक प्रकार सुख के कारणों के साथ निर्भय होकर प्रति क्षण उत्पन्न होनेवाले अत्यन्त मनोहर तथा समस्त इन्द्रियों को तृप्त करनेवाले उत्तम सुखों का अनुभव करते थे । वे चक्रवर्ती मुक्तिरूपी लक्ष्मी को वश में करने के लिए त्रिकाल (तीनों समय) श्री जिन-मन्दिर में जा कर बड़ी भक्ति से जल-चन्दन आदि अष्ट द्रव्यों से सर्व प्रकार के अनिष्टों का निवारण करनेवाली स्वर्ग-मोक्ष का अद्वितीय कारण तथा अक्षय सुख की निधि (खानि) श्री जिनेन्द्रदेव की विविध प्रकार से पूजा करते थे। इसी प्रकार वे अपने महल में भी जिनेन्द्र भगवान की पूजा किया करते थे । वज्रायुध भाव-भक्तिपूर्वक मुनियों को आहार दान देते रहते थे, सिद्धपद प्राप्त करने के लिए मुनि तथा योगियों के चरण कमलों में मस्तक नवा कर नमस्कार करते थे तथा वैराग्य प्राप्त करने के लिए मुनियों के मुखारविन्द से धर्मकथा सुनते थे । इस प्रकार धर्मभय होते हुए भी वे प्रतिदिन मोक्ष प्रदायक धर्म का उत्तरोत्तर सेवन करते थे । पर्व के दिनों में गृह तथा राज्य-सम्बन्धी समस्त पापों का त्याग कर वे धर्म की प्राप्ति तथा मोक्ष का समागम करानेवाला प्रोषधोपवास करते थे ॥२६०॥ वे चक्रवर्ती दान, पूजन तथा सदाचार के द्वारा सर्व दोषों से रहित, पाप रहित, सुख की खानि तथा इन्द्र-तीर्थंकर आदि विभूतिमय पदों के प्रदाता वीतराग जैन धर्म का विविध प्रकारेण सेवन करते थे । वे चक्रवर्ती अपना तथा पर दूसरों का कल्याण करने के लिए तथा मोक्ष प्राप्त करने के लिए सिंहासन पर विराजमान होकर अपने भ्राताओं-बन्धुओं, मित्रों, राजाओं तथा सेवकों को सदैव धर्मोपदेश दिया करते थे। श्री सर्वज्ञदेव का वर्णित यह जैन धर्म सुख का आगार है मोक्ष पद प्रदाता है, स्वर्ग का सोपान (सीढ़ी) | है, तीर्थंकर सदृश उत्तम गति का प्रदाता है, सर्व पापों का विनाश करनेवाला है, चतुरों के द्वारा सेवनीय है, गुणों के समूह की निधि है, इन्द्र की विभूति प्रदायक है तथा समस्त प्रकारेण सन्देहों से परे (रहित) है । ऐसा यह धर्म तुम सब को मोक्ष प्रदान करे । श्री शान्तिनाथ भगवान समस्त इन्द्रों-नरेन्द्रों द्वारा पूज्य हैं, मुनिराज श्री शांतिनाथ का ही आश्रय लेते हैं तथा श्री शान्तिनाथ ने ही समस्त कर्मों के समूह को नाश 4 Fb F F १०६
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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