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साथ भव्य जीवों को धर्मोपदेश देने के लिए बहुत-से देशों में विहार करने लगे । अथानन्तर- राजा बजावुध अतुल ऐश्वर्यपूर्वक राज्य करने लगे एवं पुण्य कर्म के उदय से अपनी रानियों के संग सांसारिक सुख भोगों का अनुभव करने लगे । वसन्त ऋतु में एक दिन वे धारिणी आदि अपनी रानियों के साथ देवरमण नाम के वन में क्रीड़ा करने के लिए गये थे । वहाँ पर वे सदर्शन नाम के सरोवर में अपनी रानियों के साथ क्रीड़ा करते हुए बड़े आनन्द एवं सुख से हर्ष विभोर हो रहे थे ॥२४०॥ इतने में एक विद्याधर वहाँ आया । उसने एक विशाल शिला से उस सरोवर को ढंक दिया एवं नागपाश से उसको बाँध दिया; परन्तु वज्रायुध राजा ने अपने हाथ की हथेली से ही उस शिला को दबाया, जिससे उस विशाल शिला के सैकड़ों टुकड़े हो गये । यह देख कर वह दुष्ट विद्याधर तो भाग गया । यह विद्याधर राजा वज्रायुध का पूर्व जन्म का शत्रु था । यह दमितारि विद्याधर का पुत्र विद्युदंष्ट का जीव था । इसने इसके पूर्व जन्म में भी उनके साथ बैर किया था । तत्पश्चात् अपने कर्म के आधीन होकर संसार रूपी वन में परिभ्रमण किया तथा |
मय कुछ पुण्य संचित कर अब विद्याधर हो गया था। राजा वज्रायुध भी अपने पुण्य एवं पौरुष | से विघ्न को दूर कर अपनी रानियों के साथ नगर में लौट आये । इस प्रकार पुण्य कर्म के उदय से राजा वज्रायुध का समय अपार सुख से व्यतीत हो रहा था । षट-खण्ड की राज्यलक्ष्मी को प्रदान करनेवाला | चक्ररत्न उनकी आयुधशाला में प्रकट हुआ । उनके पुण्य कर्म के उदय से सजीव-अजीव के भेद से दण्ड रत्न आदि चौदह रत्न (सात सजीव, सात निर्जीव) प्रकट हुए थे । तदनन्तर महाराज वजायुध अपनी छहों प्रकार की सेना लेकर इन्द्र के समान दिग्विजय करने के लिए निकले । उन्होंने आर्य, म्लेच्छ आदि समस्त || देशों में परिभ्रमण किया एवं समस्त राजाओं को तथा मागध आदि व्यन्तर देवों को अपने वश में कर लिया । तदनन्तर वे उनकी सार वस्तुओं तथा कन्या-रत्नों को लेकर अनेक देव एवं विद्याधरों के साथ अपने नगर को लौट आये थे ॥२५०॥ वे प्रतापी सम्राट नौ निधि एवं चौदह रत्नों को प्राप्त कर नारी-रत्न के
|१०५ साथ-साथ चक्रवर्ती के भोगों का उपभोग करते थे । पुण्य-कर्म के उदय से रूप, लावण्य तथा शोभा की निधि (खानि ) उनकी छियानवै सहस्र (हजार ) रानियाँ थी ! वज्रायुध चक्रवर्ती को आज्ञा पालन करनेवाले बत्तीस हजार मुकुटबद्ध नृपति उनके चरण कमलों को नमस्कार करते थे। उनके चौरासी लक्ष (लाख) गज (हाथी) थे तथा वायु के समान तीव्र गतिवाले अठारह कोटि अश्व थे । वज्रायुध चक्रवर्ती के राज्य
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