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________________ FFFFFFF परिवार सहित वे क्षेमंकर कल्पवृक्ष के समान सुशोभित होते थे । अथानन्तर-एक दिन ईशान नामक दूसरे स्वर्ग का पुण्यवान इन्द्र देवों से भरी हुई सभा में सिंहासन पर बैठ कर कहने लगा-'हे देवगणों ! मैं एक वृत्तान्त कहता हूँ, उसे ध्यान से सुनो । यह वृत्तान्त कर्णप्रिय हैं, उत्तम है, पुण्य-प्रदायक है, सद्गुणों का कारण (निमित्त) है एवं धर्म-यश से उत्पन्न होनेवाला है । पूर्व विदेह क्षेत्र के मंगलावती देश के रत्नसंचयपुर नगर में महाराज क्षेमंकर का पुत्र वज्रायुद्ध कुमार है । वह प्रकाण्ड बुद्धिमान है, असंख्य गुणों का सागर है, तत्वों का ज्ञाता है, धर्मात्मा है एवं मति-श्रुति-अवधि-इन तीनों ज्ञानों से सुशोभित है । वह अनेक सुखों की खानि है, निःशंकित आदि गुणों से सुशोभित है, शंका आदि दोषों से रहित है एवं उसने सम्यग्दर्शन की विशुद्धि भी प्राप्त कर ली है । वज्रायुध की इस प्रकार स्तुति सुन कर विचित्रशूल नामक देव के चित्त में शंका उत्पन्न हुई एवं वह कुमार की परीक्षा लेने के लिए पृथ्वी पर आया । वह देव अपना रूपान्तर कर वज्रायुध के समीप पहुँचा एवं उसकी परीक्षा करने के लिए 'एकान्तवाद' का आश्रय लेकर उससे पूछने लगा-'आप जीवादि पदार्थों पर विचार करने में चतुर हैं, इसलिये तत्वों के स्वरूप को सूचित करनेवाले मेरे वचनों पर विचार कीजिये ॥१८०॥ क्या जीव क्षणिक है, नित्य है या नित्य नहीं है ? क्या वह सब कर्मों का कर्ता है या नहीं? क्या वह कर्मों के फलों का भोक्ता है अथवा नहीं, ? जो जीव कर्मों को करता है, उनका फल वहीं भोगता है या अन्य कोई ? यह जीव सर्वव्यापी है या तिनके छिलके के समान सूक्ष्म है ? वह ज्ञानी है अथवा जड़ है ? आप इन सब शंकाओं का निरूपण कीजिये ।' उस देव की जिज्ञासा को सुनकर 'अनेकान्तवाद' का आश्रय लेकर कुमार वज्रायुध मधुर एवं श्रेष्ठ वचनों द्वारा शंका समाधान करने लगा। वह बोला-'हे देव ! तुम अपने मन को निश्चल कर सुनो । मैं जीवदि पदार्थों का लक्षण पक्षपात रहित होकर कहता हूँ। यदि जीव को क्षणिक माना जाये, तो पाप-पुण्य का फल, चिन्ता आदि से उत्पन्न होनेवाला काय, चोरी आदि विचारपूर्वक किये हुए कार्य, ज्ञान-चारित्र आदि का अनुष्ठान |१०१ एवं कठिन तपश्चरण आदि कुछ भी नहीं बन सकेंगे तथा शिष्यों को अन्य जीवों से ज्ञान की प्राप्ति भी नहीं हो सकेगी । यदि जीव को सर्वथा नित्य माना जाये, तो कर्मों का बन्ध-मोक्ष आदि कुछ भी नहीं बन सकेगा । इन सब दोषों से भय से बुद्धिमान पुरुषों को परीक्षा कर ‘एकान्तवाद' से दूषित अन्य सब मतों के पक्षों (प्रमाणों) का दूर से ही त्याग कर देना चाहिये । बुद्धिमानों को 'अनेकान्तवादी' जैन धर्म का ही 4E6 FE
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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