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राजनीति तथा शास्त्र-विद्या आदि समस्त विद्याओं में निपुण हो गया । वह राजकुमार हार, शेखर, केयूर, कुण्डल आदि आभूषणों से, दिव्य शस्त्रों से, यौवन अवस्था से एवं विलक्षण गुणों से शोभायमान था। उसे मति-श्रुति अवधि तीनों ज्ञान प्राप्त था । वह धीर था, चतुर था, त्यागी था एवं विवेकी था । उसने अपनी कान्ति से चन्द्रमा को भी पराजित कर दिया तथा अपनी दीप्ति से सूर्य को परास्त कर दिया था। अनेक नरेश उसकी सेवा करते थे, सब दिशाओं में उसका निर्मल यश फैल गया था तथा वह सदा न्याय-मार्ग में लीन था, उत्तम राजनीति की प्रवृत्ति करनेवाला था । वह अत्यन्त मधुर भाषण करनेवाला था, अपने रूप से कामदेव को भी जीतनेवाला था, श्री जिनेन्द्रदेव के चरण-कमलों का भक्त था एवं जैन धर्म को प्रभावना करनेवाला था ॥१६०॥ वह राज्य के भार को धारण करता था, ज्ञानी था, सूक्ष्मदर्शी था, विद्वानों में श्रेष्ठ था, तत्ववेत्ता था, बुद्धिमानों के द्वारा पूज्य था एवं गुरुजनों की सेवा करने में तत्पर था । वह बुद्धिमान सम्यग्दर्शन से सुशोभित था, श्रावकों के व्रतों का पालन करता था, धर्मध्यान में तत्पर था एवं उसके सर्वांग में समस्त शुभ लक्षण एवं व्यन्जन विराजमान थे । इस प्रकार अनेक प्रकार की सम्पदा से वह राजकुमार वज्रायुध भूमिगोचरी एवं विद्याधर राजाओं के साथ संसार में नागकुमार के समान शोभायमान था । पुण्य कर्मों एवं त्याग आदि गुणों के कारण उसका कुन्द पुष्प के समान निर्मल यश समस्त दिशाओं में विकीर्ण (प्रसारित) हो गया । पिता ने बड़े उत्सव-समारोह एवं पूर्ण विधि के साथ रूप-गुण की राशि लक्ष्मीवती के साथ उसका विवाह कर दिया था। संसार सुख में आसक्त रहनेवाले उन दोनों के सहस्रायुध नाम का पुत्र हुआ था । अपने योग्य भोजन-पान एवं सम्पदाओं से सहस्रायुध अनुक्रम से वृद्धि को प्राप्त हुआ एवं कुमार अवस्था को प्राप्त कर देवकुमारों के समान शोभायमान होता था । उसने जैन-आगम का अभ्यास किया था, वह प्रखर बुद्धिमान था, रूप-लावण्य एवं शोभा से अत्यन्त सुशोभित था । गुणों के साथ-साथ उसे यौवन अवस्था भी प्राप्त हुई थी। वह जिन भक्त था, सदाचारी था, त्यागी था, भोगी था एवं शुभ कर्मों का मानो सागर (समुद्र) था । पिता ने गृहस्थ धर्म धारण करवाने के लिए लक्ष्मी से विभूषिता श्रीषेणा नाम की कन्या के साथ बड़ी विभूति से उसका विवाह कर दिया था ॥१७०॥ भोगों में आसक्त रहनेवाले उन राजदम्पति के शान्तिकनक नामक पुत्र हुआ था, जो चरमशरीरी था, रूपवान था एवं ज्ञानादि गुणों का सागर था । इस प्रकार अपार पुण्य कर्म के उदय से पुत्र-पौत्र आदि
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