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बलात्कारगण इडर शाखा का आरम्भ भट्टारक सकलंकीर्ति से ही होता है। ये बहुत ही मेधावी, प्रभावक, ज्ञानी और चरित्रवान थे । बागड़ देश में जहाँ कहीं पहले कोई भी प्रभाव नहीं था, वि. सं. १४९२ में गलियाकोट में भेट्टारक गद्दी की स्थापना की तथा अपने आपको सरस्वतीगच्छ एवं बलात्कारगण से सम्बोधित किया । ये उत्कृष्ट तपस्वी और रलावली, सर्वतोभद्र, मुक्तावली आदि व्रतों का पालन करने में सजग थे ।
स्थिति काल- भट्टारक सकलकीर्ति द्वारा वि. सं. १४९० (ई. सन् १४३३) वैशाख शुक्ला नवमी शनिवार को एक चौबीसी मूर्ति; विक्रम संवत् १४९२. (ई. सन् १४३५) वैशाख कृष्ण दशमी को पाश्वनाथ मूर्ति; सं. १४९४ (इ. सन् १४३७) वैशाख शुक्ला त्रयोदशी को आबू पर्वत पर एक मन्दिर की प्रतिष्ठा करायी गयी; जिसमें तीन चौबीसी की प्रतिमाएं परिकर सहित स्थापित की गयी थीं । वि.सं. १४९७ (ई. सन् १४४०) में एक आदिनाथ स्वामी की मूर्ति तथा वि. सं. १४९९ (ई. सन् १४२) में सागवाड़ा में आदिनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा की थी। इसी स्थान में आपने भट्टारक धर्मकीर्ति का पट्टाभिषेक भी किया था ।
भट्टारक सकलकीर्ति ने अपनी किसी भी रचना में समय का निर्देश नहीं किया है, तो भी मूर्तिलेख आदि साधनों के आधार पर से उनका निधन वि. सं. १४९९ पौष मास में महसाना (गुजरात) में होना सिद्ध होता है। इस प्रकार उनकी आयु ५६ वर्ष की आती है । 'भट्टारक सम्प्रदाय' ग्रन्थ में विद्याधर जोहरापुरकर ने इनका समय वि. सं. १४५०-१५१० तक निर्धारित किया है । पर वस्तुतः इनका स्थितिकाल वि. सं. १४४३-१४९९ तक आता है।
रचनाएँ- आचार्य सकलकीर्ति संस्कृत भाषा के प्रौढ़ पंडित थे । इनके द्वारा लिखित निम्नलिखित रचनाओं की जानकारी प्राप्त होती है-- १.शान्तिनाथ चरित २. वर्द्धमान चरित ३. मल्लिनाथ चरित ४. यशोधर चरित ५. धन्यकुमार चरित ६. सुकमाल चरित ७. सुर्दशन चरित ८, जम्बूस्वामी चरित ९. श्रीपाल चरित १०. मूलाचार प्रदीप ११. प्रश्नोत्तरोपासकाचार १२. आदिपुराण-वृषभनाथ चरित १३. उत्तर पुराण १४. सद्भाषितावली-सूक्तिमुक्तावली १५. पार्श्वनाथ पुराण १६. सिद्धान्तसार दीपक १७. व्रत कथाकोष १८. पुराणसार संग्रह १९. कर्मविपाक २०. तत्त्वार्थसार दीपक २१. परमात्मराज स्तोत्र २२.आगमसार २३. सारचतुर्विशतिका २४. पंचपरमेष्ठी पूजा २५. अष्टाह्निका पूजा २६. सोलहकारण पूजा २७. द्वादशानुप्रेक्षा २८. गणधरवलय पूजा २९. समाधिमरणोत्साह दीपक ।
राजस्थानी भाषा में लिखित रचनाएँ-१. आराधनाप्रतिबोधसार २. नेमीश्वर-गीत ३. मुक्तावली-गीत ४. णमोकार-गीत ५. पार्श्वनाथाष्टक ६. सोलहकारण रासो ७. शिखामणिरास ८. रलत्रयरास ।
निःसन्देह आचार्य सकलकीर्ति अपने युग के प्रतिनिधि लेखक हैं । इन्होंने अपनी पुराण विषयक कृतियों में आचार्य परम्परा द्वारा प्रवाहित विचारों को ही स्थान दिया है । चरित्रनिर्माण के साथ सिद्धान्त, भक्ति एवं कर्मविषयक रचनाएँ परम्परा के पोषण में विशेष सहायक हैं । सिद्धान्तसारदीपक, तत्त्वार्थसार, आगमसार, कर्मविपाक जैसी रचनाओं से जैनधर्म के प्रमुख सिद्धान्तों का उन्होंने प्रचार किया है । मुन्याचार और श्रावकाचार पर रचनाएँ लिखकर उन्होंने मुनि और श्रावक दोनों के जीवन को मर्यादित बनाने की चेष्टा की है । इनकी हिन्दी में लिखित 'सारसीखामणिरास' और 'शान्तिनाथफाग' अच्छी रचनाएँ हैं । इनमें विषय का प्रतिपादन बहुत ही स्पष्ट रूप में हुआ है।
("तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा" लेखक स्व. डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य ग्रंथ से साभार)