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की अवस्था में नेणवां से वापिस आकर अपने प्रदेश, बागड़ में धर्म प्रचार करने लगे । यह प्रदेश जैन धर्म प्रचार की दृष्टि से बहुत पीछे थे । सकलकीर्ति ने इस बीड़े को उठाया तथा स्थान-स्थान पर भ्रमण कर जैनधर्म को लोकप्रिय बना दिया। गुजरात में भी उन्होंने धर्मप्रचार कार्य किया। उनका यह प्रचार कार्य सं०१४७७ से १४६६ तक चलता रहा।
प्रचार कार्य के अन्तर्गत प्रतिष्ठाओं का संयोजन भी था । सकलकीति ने कुल मिलाकर चौदह बिम्बप्रतिष्ठा करायीं । उनके द्वारा प्रतिष्ठापित जिनमूर्तियां आज भी उदयपुर, डूंगरपुर आदि स्थानों पर उपलब्ध होती हैं। ___ सं० १४६२ में बागड़ देश के गलियाकोट में भट्टारक की गद्दी उन्होंने स्थापित की और अपने आपको सरस्वतीगच्छ एवं बलात्कारगण से सम्बद्ध किया। उनकी शिष्यपरम्परा में विमलेन्द्रकीति, धर्मकीर्ति, ब्रह्मजिनदास, भुवनकीर्ति एवं ललितकीर्ति प्रमुख हैं।
भट्टारक सकलकीति का स्थितिकाल सं० १४४३ से १४६६ तक रहा है। डॉ० जोहरापुरकर ने उनका समय सं० १४५० से सं० १५६० तक प्रस्थापित किया है । इस ५६ वर्ष के कार्यकाल में सकलकीति ने महनीय कार्य किया है।
सकलकीर्ति बहुभाषाविज्ञ थे। उन्होंने संस्कृत, प्राकृत और राजस्थानी हिन्दी में अनेक ग्रन्थों की रचना की । उनकी संस्कृत भाषा की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं
१. शान्तिनाथचरित्र, २. वर्द्ध मानचरित्र, ३. मल्निाथचरित्र, ४. यशोधरचरित्र, ५. धन्यकुमारचरित्र, ६. सुकुमालचरित्र, ७. सुदर्शनचरित्र, ८. जम्बूस्वामीचरित्र, ६. श्रीपालचरित्र,१०. आदिपुराण-वृषभनाथचरित्र, ११. नेमिजिनचरित्र, १२. उत्तरपुराण, १३. पार्श्वनाथपुराण, १४. पुराणसार संग्रह, १५. मूलाचारप्रदीप, १६. तत्त्वार्थसारदीपक, १७. समाधिमरणोत्साहदीपक, १८. सिद्धान्तसारदीपक, १६. प्रश्नोत्तरोपासकाचार, २०. सद्भाषितावली-सूक्तिमुक्तावली, २१. व्रतकथाकोष, २२. कर्मविपाक, २३. परमात्मराजस्तोत्र, २४. आगमसार, २५. सार्थचतुर्विषतिका, २६. पचपरमेष्ठी पूजा, २७. अष्टान्हिकरण पूजा, २८. सोलहकारणपूजा, २६. द्वादशानुप्रेक्षा, ३०. गणधरवलय पूजा ।
राजस्थानी भाषा में लिखित रचनायें हैं१. आराधनाप्रतिबोधसार, २. नेमीश्वरगीत, ३. मुक्तावलीगीत।
१. भट्टारक सम्प्रदाय, पृ० १५८