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________________ तप को विधिपूर्वक करके तथा मरकर यशोध भूपति से चन्द्रमती को यशोधर नाम का पुत्र हुआ। (८५-९०) राजपुत्री के दुश्चरित्र को देखकर विषयों से विरक्त हो राम मन्त्री ने अपनी पत्नी के साथ सुब्रह्मचर्य व्रत धारण कर लिया। कालान्तर में दोनों मरकर विजयाध पर्वत पर विद्याधर-विद्याधरी के रूप में उत्पन्न हुए। गन्धर्वसेन ने भी बहिन के दुष्कर्म को जानकर वैराग्यपूर्वक जिनदीक्षा धारण कर ली और समाधिमरणपूर्वक मरकर निदान बन्ध के कारण तुम यहां मारिदत्त नामक राजा हुए। और गन्धर्वश्री कठोर तप करने के बावजूद पूर्व संस्कारों के कारण शीलादि व्रतों से दूर रही। दुराचारी वह भीम भी मरकर कुब्जक हुआ। (६१.६७) पूर्व भव में किसी एक महिला ने ताप शमन के अनुसार तप किया तथा कुपात्रों को दान दिया। उसके फल से मरकर, वह यशोऽधं राजा की चन्द्रलक्ष्मी नाम की पत्नी हुई। तथा चन्द्रमती की सपत्नी बनी । वैर तथा द्वेष से उसका चित्त सदा कलुषित बना रहता था। वैर से उपार्जित पाप के कारण चन्द्रलक्ष्मी मरकर घोटक हुई जिसे चन्द्रमती के जीवरूप उस भैंसे ने मार डाला। वह घोड़ा मरकर मिथिला नगरी में सम्यग्दर्शन और व्रतों से अलंकृत जिनदत्त श्रेष्ठी के घर में अशुभ कर्म के उदय से बैल हुआ । गाय के अशुभ गर्भ में उसका शरीर निरन्तर पीड़ित था । एक दिन वह बैल मर रहा था। हितेषी सेठ ने उस बैल को पंचनस्कार व्रत दिया जो मन्त्र सर्व सुखों का आकर समस्त विघ्नों का नाशक और सार श्रेष्ठ था । महामन्त्र के प्रभाव से वह बैल मरकर आपकी रूपिणी नामक भार्या के गर्भ में आया है। अपने वंश रूपी आकाश का सूर्य तथा अनेक गुणों से मंडित वह पुत्र आपकी राज्य लक्ष्मी का भोक्ता होगा इसमें संदेह नहीं । (१८-१०६) पहिले जो राम मन्त्री मरकर विद्याधर हुआ था वह पांच अणुव्रतों के पालने से पुण्य बंधकर, शुभ ध्यान से मरकर, यशोधर राजा के यशोमति नामका कुमार हुआ। और मन्त्री की जो सुन्दर पत्नी चन्द्रलेखा मरकर विद्याधरी हुई थी वह भी अपने पति के साथ शुभ व्रतों को पालकर, देह का त्यागकर, पूर्व पुण्य से कुसुमावलि हुई। आपकी बहिन राजा यशोमति की रतिपदा हुई। आपके पिता जो चित्रांगद राजा थे, वे परिव्राजक साधु हो गये। वह मूर्ख कुतीर्थों की यात्रा करता हुआ, तप से शरीर को पीडित करता हुआ, एक दिन अज्ञानतावश अपने पुराने नगर में में आया। उसने इस नगर में देवी के मंदिर में किये जाने वाले उत्सव को देखा और देवी बनने का निदान बांधा । वह मूर्ख परिव्राजक मरकर निदान से चण्डमारी नामकी देवी हुआ।
SR No.002236
Book TitleYashodhar Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain
PublisherSanmati Research Institute of Indology
Publication Year1988
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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