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काम की महाविद्या को गुरुदक्षिणा के रूप में आप स्वीकार करें। उसर में क्षुल्लक ने कहा- तुमने अर्घ्य चढ़ाकर श्रद्धापूर्वक हमारी जो वन्दना की है।
और हमारे उपदेश से निर्मल सम्यक्त्व धारण किया है, इतने से ही मेरी दक्षिणा पूरी हो गयी है । क्योंकि लक्ष्मी, सोना, पृथ्वी, घर, मंत्र, तंत्र अंजन, विद्या आदिक के ग्रहण करने से, तपस्या भंग हो जाती है । इसलिए निर्ममत्व होना, नि:संगता और विरागती का होना दीक्षा के लिए अत्यन्त आवश्यक है । (४.६-३४)
इसके बाद वह देवी सबके सामने मारिदत्त राजा से बोली-तुम धर्म के मूल कारण हित-मित प्रशस्त वचन सुनो। हे संसार के जीवो ! आज से लेकर घोर पापबंध का कारण जीवों के वध का नाम भी मत लो और कभी भी मन से वध का विचार आप लोग मत करो। ऐसा करने पर आपके यहां सर्वशांति और सुभिक्षता होगी । अगर आप जीवों का वध करेंगे तो महान् रोग, क्लेश आदि अनेक दुःख प्रजा में होंगे । सभा के मध्य ऐसा कहकर अपने गुरु की तीन प्रदक्षिणा देकर, उनके चरणकमलों में नमस्कार कर वह देवी अन्तध्यान हो गयी। परम् संवेग को प्राप्त कर राजा क्षुल्लक महाराज से बोला-प्रभु! मुझे पापों का क्षय करने वाली दीक्षा दें । क्षुल्लक महाराज ने कहा-हे राजन, मैं आपको दीक्षा देने के लिए समर्थ नहीं हूं। दीक्षा लेना हो तो हमारे गुरु के पास चलें। (५५-६०)
विवेकी राजा ने सविस्मय विचार किया-सामंत, मन्त्रिगण और महीपाल अपने-अपने मस्तक नवाकर मुझे नमस्कार करते हैं। मैं देवता को नमस्कार करता हूं। देवी क्षुल्लक को नमस्कार करती है । वह क्षुल्लक भी .. मुनिराज को नमस्कार करता है । यह तो वस्तुतः धर्म का ही प्रभाव है ।
आचार्य सुदत्त मुनि भी अवधिज्ञान से मारिदत्त की प्रबुद्धता को जानकर ससंघ उसे दीक्षित करने वहां आ पहुंचे। राजा ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी पूर्वभव परम्परा जानने की इच्छा व्यक्त की। महाराज यशोधर तथा 'चन्द्रमती,. यशोधर राजा और अमृतदेवी, भैरवानन्द योगी, रानी कुसुमावलि, . राजा यशोमति, चण्डमारी देवी, घोड़ा, गोवर्धन सेठ और कुब्जक इन सभी जीवों के पुण्य और पाप के फल पूर्व भव्यों में कैसे थे ? मुनिराज ने उत्तर में उन सभी की भव-परम्परा इस प्रकार बतायी। (६१-७०) ___जंबूद्वीप में गंधर्व देश है और गंधर्वपुर का राजा गंधर्व है । उस राजा की विन्ध्यश्री नाम की रानी है। उन दोनों के गंधर्वसेन पुत्र तथा गंधर्वश्री नाम की कन्या उत्पन्न हुई। उस गंधर्व राजा के राम नाम का मन्त्री था। उस मन्त्री को चन्द्रलेखा नाम की धर्मपत्नी थी। उन दोनों के जितशत्रु और