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बंदनीय हो जायेंगे । अन्य साधु गुरु-जन तथा सन्यासीगण अवंद्य हो जायेंगे । इसलिए निष्काम तथा जांगिक संस्कारों से वर्जित, विमल यतिवर धीमानों द्वारा वंदनीय हैं और इच्छाओं के दास तथा शरीर की सजावट से युक्त अन्य गुरु वंदनीय नहीं हैं । (१६-२४)
नग्नत्व अपशकुन एवं अमंगलकारक है यह कहना भी उचित नहीं है क्योंकि संसार के सभी प्राणी जन्म से नग्न ही होते हैं । क्योंकि इस संसार में जीव नग्न ही पैदा होता है और नग्न ही जन्मान्तरण करता है इसलिए संसार के सभी दार्शनिकों ने नग्नता को संमान्य और पवित्र कहा है । जो मुनीश्वर विरागी हैं, दृढ़ ब्रह्मचारी हैं, और जगत् को तृण के समान तुच्छ मानते हैं, उन मुनिवरों ने वस्त्रादि वस्तुओं का त्याग कर दिया है। जो कुलिंग के धारक त्यागी-संयासी, स्त्रीपरिषह और विकारभावों को जीतने में असमर्थ हैं उन त्यागी-संयासियों ने वस्तुतः अपने दोषों को ढकने के लिए चीवर पहिनना स्वीकार कर लिया। जिनोक्त नग्न अवस्था के धारण करने से ही इन्द्रपद, तीर्थंकरत्व, केवलज्ञान, सर्वज्ञत्व, मुक्ति और चक्रवर्ती पद भी प्राप्त होते हैं। जो शीलरूपी वसन को धारण करते हैं वह नग्न होने पर भी नग्न नहीं कहे जाते हैं। और जो शीलव्रत को त्याग देते हैं वे वस्त्र के धारण करने पर भी नग्न हैं। अतएव त्रिलोक में मंगल के लिए, मुक्ति प्राप्ति के लिए, यह नग्नावस्था सज्जनों द्वारा पूज्य है। वही मुनि संसार में वंदनीय है जो नग्नावस्था को धारण करता है । (२५-३१)
हे राजन् ! आपने जो कहा है कि मैं इस मुनि का वध करूँगा, यह आपका दुर्वचन बालवचन की भाँति अग्राह्य है । जो भट हाथ से सुमेरु पर्वत को चलाने में समर्थ नहीं हैं, क्षीर-समुद्र का जल पीने से शक्तिशाली नहीं हैं, चन्द्र और सूर्य का भक्षण करने में समर्थ नहीं हैं, पाताल से पृथ्वी का उद्धार करने में समर्थ नहीं हैं, और चलती वायु को रोकने में असमर्थ हैं, भला आप जैसे वे महाभट मुनिराज का पराभव करने में कैसे समर्थ हो सकते हैं ? तपोबल और ऋद्धियों से युक्त ये मुनिराज यदि कहीं दैवयोग से कुद्ध हो जावें तो वे क्षण मात्र में ही आप जैसे शूरवीरों को भस्म की राशि में परिणत कर देगें। जैसे आत्महितैषी पुरुष कां सोते शेर को उठाना हितकर नहीं है, उसी भाँति आपको इन मुनि का वध या निग्रह करना लाभदायक नहीं होगा, प्रत्युत अनिष्टकर होगा । हे राजन् ! राजा महाराजा आपको नमस्कार करते हैं, इससे आप अपने को सर्व शक्तिवान कहते हो लेकिन आपका गर्व हटाने के लिए मैं इन मुनि की कथा कहता हूँ। आप ध्यान से इस कथा को सुनो। (३२-३७) । ___ यह मुनि कलिंग देश का स्वामी सुदत्त नाम का राजा था। धीर, दक्ष, विचार