________________
३४
द्विनवर्ग और अन्य सेवकों को खाने के लिए ले गये । इसी अवसर पर विनयशील उस मूर्ख पाचक ने मांस की शुद्धि के लिए महाराज से निवेदन किया, "हे महाराज काक, मार्जार और कुत्तों से जो मांस जूठा हो जाता है वह बकरे के सूंघने से शीघ्र ही शुद्ध हो जाता है।" उसी समय वह मूर्ख राजा बोला, "तब उस बकरे को लाओ।" राब मैं बाँधकर भोजनालय में लाया गया और पापकर्म के उदय से वहाँ बांधकर रक्खा गया। जब उस भोजनशाला में भूख और प्यास की असह्य वेदना को भोग रहा था तभी वहीं पर मुझे जातिस्मरण ज्ञान पैदा हो गया : आज मेरे पुत्र और स्त्रियों ने मेरे सुख के लिए भक्तिपूर्वक बड़े हर्ष के साथ वैदिक विद्वानों को मधु मांसादिक भोज्य पदार्थों का भोजन कराया है। (८५-६०)
मेरे पिता यशोधर अपनी माता चन्द्रमती के साथ स्वर्ग में इन वस्तुओं का . फल भोगें-ऐसा कहकर वैदिक विद्वानों के लिए गाय, पृथिवी और स्वर्णादिक चीजें दान में दी हैं। परन्तु इस बकरे का शरीर धारण करने वाले मुझ यशोधर को उन चीजों का जरा भी फल नहीं मिल रहा है बल्कि भोजनशाला में भूख और प्यास की वेदना के साथ शारीरिक और मानसिक कष्टों को भोग रहा हूँ । जैसे जल के मंथन से कहीं भी घी पैदा नहीं होता, साँप के मुख से कभी भी अमृत पैदा नहीं होता और चारित्र के मलिन होने से लोक में कीति पैदा नहीं होती, वैसे ही प्राणि-हिंसा से संसार में धर्म नहीं होता। वैसे ही पुत्र द्वारा किये जाने वाले दान से स्वर्गगत पितरों की भी तृप्ति नहीं होती है। अतः मानवों का श्राद्ध करना और उसमें दान देना, धान्य के तृण को कूटने की तरह निरर्थक है। भोजन कर उन वैदिक विद्वान् एवं ब्राह्मणों के अपने-अपने घर चले जाने पर अपनी समस्त स्त्रियों के साथ बड़ी सजधज से भोजन करने वाले अपने पुत्र यशोमति को देखकर मेरे मन में यह विचार पैदा हुआ कि इस पंक्तिभोज में सारा रनवास दिखाई पड़ रहा है किन्तु मेरे प्राणों का नाश करने वाली मेरी धर्मपत्नी श्रीमती अमृतमती देवी नहीं हैं। वे कहाँ गयीं? उसी समय कोई दासी अपनी सखी से बोली-बहिन ! आज ही मारे गये इन भैसों के मांस की दुर्गन्ध नहीं सही जाती है, तब उसकी दूसरी सखी बोली-हे भगिनी ! यह भैंसे के शरीर की गन्ध नहीं है किन्तु कोढ़ रोग से पीड़ित और मत्स्य के भक्षण करने से देवी अमृतमती के शरीर की दुर्गन्ध फैल रही है। इस अमृतमती देवी ने दूसरों से कहा कि अधिक मछलीमांस खाने से उसे कुष्ट रोग हो गया है लेकिन वस्तुतः मछली के मांस खाने से उसे कुष्ठ रोग नहीं हुआ, किन्तु इस पापिन ने जबर्दस्ती अपने पति को विष खिला कर मार डाला, इस पाप से ही इसके शरीर में यह भयंकर रोग पैदा हो गया है और कुरूपा-निंदनीया हो गयी है । इसके शरीर से बुरी गन्ध आती है, इसका