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________________ ३२ यशोमति राजा शीघ्र ही उठकर सिप्रा नदी पर गया। भय से व्याकुल होकर शीघ्र ही भागकर मैं पृथ्वी के बिल में घुस गया। राजा ने धीवरों को आज्ञा दी । आज्ञा मिलते ही प्रसन्न वे धीवर बड़े प्रयत्न से जल्दी जल्दी नदी में उतरने लगे । दा- विरहित अत्यन्त क्रूर उन धीवरों ने परिश्रम करके जाल और भ्रमण से सारे तालाब के जल को क्षुब्ध कर डाला । अशुभ कर्मोदय से भयंकर विशाल शरीर वाला और भय से भयभीत यह बड़ा शिशुमार शीघ्र ही जाल में पकड़ा गया । वे धीवर शीघ्र ही बड़े प्रयत्न से उस पापी शिशुमार को नदी के जल से खींच-खींचकर नदी के किनारे ले आये । तट पर पड़े हुए भी अतीव भयानक उ शिशुमार को महाराज यशोमति की आज्ञा से धीवरों ने लाठी, भालादिक के प्रहार से मार डाला । (४६-५६ ) बकरी और बकर उज्जैन नगर के पास ही एक अत्यंत भयानक कसाईखाना है जो कुरूपता की खान है और चर्म, हड्डी, मांस इत्यादि घृणित पदार्थों से सदा परिपूर्ण रहता है । वह शिशुमार बड़े कष्ट से मरकर पापोदय से उसी बूचड़खाने में बकरा पैदा हुआ। वह बकरा माता के दूध के बिना भूख से पीड़ित होने से भी दिन-दिन बढ़ने लगा। वहाँ से उन धीवरों के अपने-अपने घर चले जाने पर मैं बिल से निकला और उस सरोवर में जीवों का आहार करता हुआ बिना भय के कुछ समय तक रहा। फिर कुछ दिनों के बाद मत्स्यों के पकड़ने के इच्छुक वे धीवर उस तालाब पर आये। उन चतुर धीवरों ने जाल को चारों ओर घुमाकर ऐसा डाला कि वह जाल आकर मेरे ऊपर पड़ा। जाल में फंसी हुई मछली जानकर धीवरों का अंतःकरण प्रसन्न हो गया और उन्होंने शीघ्र ही जल में घुसकर जाल में बँधे हुए मुझे अपने हाथों से ही जल से बाहर निकाला । वे धीवर जल्दी से मुझे पत्थरों से मारने लगे । उन धीवरों में से एक बुड्ढा धीवर बोलाइस मत्स्य को इस समय पत्थरों से मत मारो। उस वृद्ध के वचन सुनकर मैंने मन में सोचा, यह दयालु वृद्ध धीवर मुझे जाल और दुःख से छुड़ा देगा । ( ५७-६३ ) वह वृद्ध धीवर फिर बोला - यह रोहित मत्स्य है । यदि हम इसे आज मारेंगे तो यह खराब हो जाएगा और शायद कल महाराज के खाने योग्य न रहे । वेधीवर मुझे खाट पर रखकर अपने नगर ले गए और उन निर्दयों ने मुझे झोंपड़ी के एक भाग में घास पर रख दिया। मैंने भूमि सम्बन्धी अनेक दुःख भोगे और तीव्र से तीव्र भूख प्यास, दंश, शीत और गर्मी आदि की अनेक वेदना सही महान् कष्ट से मेरी वह रात्रि वहाँ पर बीती । सुबह उन धीवरों ने धन पाने की इच्छा से मेरे पुत्र यशोमति के आगे मुझे ले जाकर दिखलाया। वह मूर्ख
SR No.002236
Book TitleYashodhar Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain
PublisherSanmati Research Institute of Indology
Publication Year1988
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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