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और जन्म के समय असहनीय दुःखों को मैंने बड़ी वेदना के साथ भोगा। पूर्व 'पाप कर्मों के उदय से मेरी माता के स्तनों का दूध सूख गया। दूध के न मिलने से उदर में उत्पन्न क्षुधा की वेदना से मैं अतीव व्याकुल होने लगा। भूख से पीड़ित, शक्तिहीन मैं सर्प खोज-खोज कर बड़े आदर से भोजन पाने को उद्यत हुआ किन्तु आहार की मात्रा समुचित न मिलने से मेरा शरीर हृष्ट-पुष्ट और दृढ़ नहीं हो सका।।३३-३६) . राजा यशोमति ने जिस कुत्ते को मार डाला था वह कुत्ता भी मिथ्यात्व कर्म के तीव्र उदय से भीम वन में अतीव जहरीला कृष्ण सर्प हुआ । एक दिन घूमते हए मैंने उस सर्प को देखा और देखते ही उनकी पूंछ उसी भांति अपने मुख में घर दबाई जिस भांति पूर्व भव में उस कुत्ते ने मेरा गला धर पकड़ा था। फलतः वह काला सांप पीड़ा से पीड़ित होने पर क्रोध से मुझे खा जाना चाहता था पर मेरा शरीर कांटों से आच्छादित होने से उसका मनोरथ सफल न हो सका। इसी समय सहसा कोई चीता आ गया और उसने मुझे दबाकर पकड़ लिया और मेरी हड्डियों को भी पीस-पीसकर बड़ी क्रूरता के साथ मुझे खा डाला। (३३-४२)
रोहित मत्स्य और शिशुमार .
विशाला नगरी के समीप ही सिप्रा नदी है जो बड़ी ही रमणीय है। निर्मल जल से सदा भरी रहती है । जो नगर के विशाल परकोटे से लगकर बह रही है, जिसमें सदा भाँति-भाँति के कमल खिलते हैं और जिसकी बालु भी मृदु-मदु होने से चित्त को आनंदित करती है । वन में उस सिप्रा नदी में मैं पापी विशालकायधारी . रोहित.मत्स्य हुआ। मेरे जन्मकाल में ही मेरी माता मर गयी, मैं मातृहीन हो गया । वन में बड़े दुःख से प्राणों को छोड़कर वह काला सांप भी उसी सिप्रा नदी में पापकर्म के उदय से अत्यन्त भयानक शिशुमार हुआ। . एक दिन हृदयस्थित पूर्व बैर के कारण मछली खाने की इच्छा वाला वह शिशुमार मुझे पूंछ से पकड़कर खाने लगा, जैसे पूर्वभव में मैंने उसे पूंछ पकड़कर • खाया था। इसी बीच कुब्जक वामन आदि जनों का झुण्ड नहाने के लिए सिप्रा नदी पर आया और उनमें एक कुबड़ी स्त्री उस शिशुमार के मस्तक पर गिर पड़ी। उस ग्राह ने शीघ्र ही मुझे छोड़कर उस कुब्जा को मजबूती से पकड़ लिया। तब वह कुब्जा जोर-जोर से चिल्लाने लगी तथा वे सब स्त्रियाँ बिना नहाये ही 'भय से घबड़ाकर किनारे की ओर भाग खड़ी हुई। (४३-४८)
राजा यशोमति ने उस कुब्जा दामी के दैन्य युक्त वचन सुनकर सभा के बीच ऊँचे स्वर से क्रोध में कहा-“मैं बेगुनाह-अपराध रहित मृगादिक जीवों का बध प्रतिदिन किया करता हूं। फिर दुष्ट अपराध करने वाले, मनुष्यों को सताने वाले ग्राह आदि जलचर जीवों को मारने से कैसे बचा दंगा!" इतना कहकर वह हिंसक