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________________ पंचम सर्ग मयूरी और कुक्कुर इस जंबूद्वीप के आर्यखण्ड के मध्य विन्ध्य नाम का अतीव उन्नत पर्वत है जो जीवों को भय पैदा करता है और सदा मांसलो लुप पक्षियों, हिंसक सिंह, व्याघ्र, व्याध आदि जीवों से परिपूर्ण है । पूर्वोपार्जित पापकर्म के उदय से मैं (यशोधर राजा) मरकर इसी विन्ध्य पर्वत के वन में रहने वाली मयूरी के दुखद गर्भ में गया। उस गर्भ में अतीव असह्य दुःखों को कर्मवशात् भोगकर उस मयूरी के अशुचि द्वार से पैदा हुआ, दीन और सवांग पीड़ा से पीड़ित हो रहा था। उसी समय कहीं से किसी पापी व्याध ने आकर मेरे पास सुखपूर्वक बैठी हई मेरी माता मयूरी को बाण से मार डाला और उस मृत मयूरी को अपने कन्धे पर रखकर और मुझे अपनी गोद में दबाकर, अयोध्या के पास स्थित अपने माक्षिक ग्राम ले गया। भूख से व्याकुल मुझ मोर को अपने घर के एक गड्ढे मे रखकर और मृत मयूरी को लेकर वह व्याध कोटपाल के घर गया । मयूरी को कोटपाल को देकर जब वह घर पर खाली हाथ वापिस आया तो उसकी पत्नी नाराज होकर बोलीआज घर में खाने को कुछ भी नहीं है । यहाँ से चले जाओ । तब वह मुझे लेकर रक्षक के पास दुबारा गया और थोड़े मूल्य में रक्षक-कोटवाल के हाथ मुझे बेचकर घर वापिस आया। (१-६) 'मैं इसे यशोमति महाराज को भेंट रूप में दूंगा', इस विचार से उस कोटवाल ने मेरा पालन पोषण बड़ी सावधानी से किया । कीड़ों के भक्षण से धीरे-धीरे मेरा शरीर भी खूब इष्ट-पुष्ट हो गया, सबके मन को लुभाने वाला अत्यन्त रमणीय और कोमल कांतिशाली कलाप भी पैदा हो गया। एक दिन वह कोटपाल मुझे लेकर विशाला नगरी उज्जयिनी गया और वहाँ पर मेरे पुत्र महाराज यशोमति के लिए मुझ मयूर को दिखाया। महाराज यशोमति भी मुझे देखते ही अत्यन्त • स्नेह और सन्तोष को प्राप्त हुआ। पिता के दर्शन होने पर इस लोक में किसे सन्तोष नहीं होता ! उस कुलटा अमृतमती ने मेरे साथ ही विष खिलाकर मेरी माता ''नन्द्रमती को मारा था, वह चन्द्रमती मरकर मिथ्यात्व कर्म के करने से संचित पाप'कर्म के उदय से करहाटक नगर में कुक्कुर कुल में कुत्ता हुई। उसका अतीव विक राल मुख था। देखने में अत्यन्त भीषण था, रौद्र परिणामी था, कुटिल दाढ़ें थीं, मानो वह श्वान दूसरा यमराज ही हो । उस नगर में महाराज ने उसे देखा । फिर एक दिन महाराज यशोमति को वह कुत्ता शिकार के लिए भेंट में भेजा गया। (१०-१६) एक दिन राजा यशोमति उस सुन्दर श्वान को देखकर अतीव हर्षित हुआ । देखो, पापकर्म के प्रभाव से संसार में कौन-सी अजीब बात नहीं हो जाती है ! राजा यशोमति ने कुत्तों के पालक चण्डमति की निगरानी में उस कुत्ते को पालन
SR No.002236
Book TitleYashodhar Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain
PublisherSanmati Research Institute of Indology
Publication Year1988
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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