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___ यह सुनकर मेरी माता बोली-हे पुत्र, पूर्वाचार्यों द्वारा प्रतिपादित हिंसाधर्म और वेद को खोटे वचनों और हेतुओं से दूषित मत करो । वेद, पुराण और स्मृति आदिक का विचार संसार में नहीं किया जाता है बल्कि मुनि द्वारा प्रतिपादित धर्म आदि का ही विचार किया जाता है। शिवशासन में वेद प्रतिपादित धर्म ही अत्यधिक प्रसिद्ध है और वह धर्म आज्ञाप्रधानी होकर पालना चाहिए, न कि बुरे वचनों और असद्हेतुओं से उसका निराकरण करना चाहिए ।' तब मैंने विचार किया कि जिनेन्द्रदेव भी अपने वचनों से ससार के ऐसे जनों को नहीं. समझा सकते फिर भला मेरे जैसे अल्पज्ञानी द्वारा यह मूर्खजन कैसे समझाया जा सकता है ! (७८-८१)
हे राजन्, उस समय मैं चुपचाप बैठ गया और मैंने सोचा, मेरी मां को जो अच्छा लगे वह करे। फिर भी मैंने माँ से कहा-माँ ! यदि विवेकहीन पुरुषों ने हमें प्राणिहिंसा-जन्य धर्म कहा है तो मैं कुण्डल और मुकुट सहित अपना • सिर काटकर देवता के लिए समर्पण करता हूँ किन्तु किसी अन्य जीव की हिंसा मन, वचन और काय से भी नहीं करूँगा, क्योंकि जीवहिंसा नरक-गमन का मूल कारण है । इस प्रकार सभा के मध्य सभी सदस्यों के सामने वचन कहकर और अपने हाथ से तलवार को म्यान से निकालकर मनोहर हार से.सुशोभित अपने कण्ठ पर चलाने को तत्पर हुआ। मेरे कण्ठ पर उस तेज धारवाली तलवार को चलती देख, अरे यह क्या करते हो, इस प्रकार जोर से चिल्लाकर स्वयं ही माँ ने वह तलवार मेरे गले पर से दूर की । पहिले मुझे पकड़कर उसने मेरी राय की अनुमोदना की तथा भयानक स्वप्न की शान्ति के लिए भय से अत्यन्त गदगद् वचन बोलने वाली मूर्ख माता मुझसे बोली। (८२-८८)
हे पुत्र, अधिक कठोर मत बनो। आज अपने हाथ से हत, आटे के मुर्गे से स्वप्न को शान्ति के लिए देवी की पूजा कसे। पादलग्ना माता को देखकरं चिरकाल से पापकर्म के उदय से मोहांधकार से आच्छादित मैं विचार करने लगाधर्म और अधर्म को जानने वाली यह मेरी माता संसार में अन्यथा विचार क्यों करेगी, जो धर्म होगा उसी को वह धर्म कहेगी। संभवतः ऐसा विश्वास करने वाले पुण्य से रहित पापी और मूढ़ मैंने माता को अपने पैरों से उठाया और कहाआपकी जो इच्छा हो, वह करो। इस मनुष्य-लोक में प्राणियों को जो गति होने वाली है उसके अनुकूल ही बुद्धि, धर्म आदि सहायक सामग्री मिल जाती है । माता ने चित्रकार को तत्काल ही आज्ञा दी, 'देवता की बलि के योग्य, अत्यन्त सुन्दर और उन्नत पिष्ट का मुर्गा बनाकर लाओ।' आज्ञा मिलते ही चित्रकार भी अतीव सुन्दर पिष्ट का मुर्गा बनाकर लाया । तब माता मुझे और पूजा की सामग्री तथा उस आटे के मुर्गे को लेकर कात्यायिनी देवी के मठ में शुभकामना लेकर गयी ।