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अनेक शास्त्रों के जानकार अभयरुचि क्षुल्लक मनोहर वाणी में राजा और परिवार के लोगों को सम्यक् शान कराने के लिए कहने लगे - "मैंने इस बहिन के जीव के पिछले भव में जो भयानक दुःख स्वयं भोगे हैं वे अपने किये हुए कर्मों से और कुमार्ग पर चलने के कारण उत्पन्न हुए हैं। इन सब दुःखों का वर्णन आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। आप सभी सज्जन उन्हें ध्यान से सुनें ।"
द्वितीय सर्ग
इस भारतवर्ष में मनोहर अवन्ती देश है जो हर्षमय धन-धान्यादिक सम्पत्ति से और धर्म तथा धार्मिक सज्जनों से शोभायमान है; जहाँ पर मुक्ति पाने की इच्छा से, संसार से विरक्त देवगण भी जन्म लेने की कामना करते हैं; देवेन्द्रों से पूजित बड़े-बड़े केवलज्ञानी भी अपने महान् संघ के साथ भव्यों को धर्मोपदेश देने के लिए निरन्तर विहार करते रहते हैं। विद्याधर और देवगण, ज्ञान-कल्याणक और निर्वाण-कल्याणक में तीर्थंकरदेव और मुनियों की पूजा करने के लिए निरन्तर आते रहते हैं; सुन्दर-सुन्दर फल-फूलों के भार से नम्र और सघन-शीतल वनों में अनेक योगीराज धर्मध्यान और शुक्लध्यान करते हैं; कोई-कोई श्रेष्ठ मुनि समस्त इन्द्रियों का और मन का दमन करने वाला ज्ञानाभ्यास करते हैं और मुक्तिवधु की प्राप्ति के लिए देह का व्युत्सर्ग करते हैं; ग्रामों-ग्रामों में रमणीय जैन मन्दिर शोभायमान हैं, जो शिखर के अग्रभाग में स्थित पताकाओं से, गान और नृत्यकला से सदा शोभित हैं और ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे धर्म के सागर हों। उस आवन्ती देश के कोई भव्य जीव जिनदीक्षा लेकर मुक्ति को प्राप्त करते हैं और कोई भव्य कर्मशत्रुओं को नाशकर स्वर्गादि में उ पन्न होते हैं । ( १-१.) .
उस मनोहर अवन्ती देश में उज्जयिनी नामक नगरी है जो धार्मिक जनों से सदा शोभायमान है; धन-धान्य और सुखों की अनुपम खान है । ऊँचे-ऊँचे प्राकार, गोपुर और विशाल तथा गम्भीर खातिका से सुशोभित है; अयोध्या नगरी की तरह बड़े-बड़े पराक्रमशीली शत्रुओं से भी अलंध्य है; त्यागी, वीर और सदाचारी जनों का आवास है, तथा रूप-लावण्य से शोभित और शील रूपी अलंकारों से सुसज्जित नारियों से अलंकृत है । वह उज्जयिनी जिनमन्दिरों के शिखरों में बद्ध पताका रूपी हाथों से मुक्ति-लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए देवों को बुला रही है, ऐसा प्रतीत होता है। जिनमन्दिरों में पूजा करने के लिए जाने वाली सुन्दर-सुन्दर स्त्रियाँ आने वाली देवांगनाओं की तरह जहाँ शोभायमान होती हैं; जहाँ पर दाता सदा पात्रों को दान देने के लिए अपने-अपने द्वार पर खड़े होकर पात्रों को देखते हैं। कोई भाग्यशाली दाता उत्तम पात्रों को दान देकर पंच आश्चर्य-वृष्टि को प्राप्त करते हैं