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होता। जो सप्त धातुनों से मलिन देह का नाशकर शुभ ऋखि आदिक गुणों को प्रदान करे उसे बुरा कौन कहेगा !" इस प्रकार अपने-अपने वचनामृतों से परस्पर धैर्य बंधाते हुए विवेकशील और संसार से विरक्त वे दोनों भाई-बहिन जल्दी ही उस देवी के मन्दिर में गये (७८-८४)। वह देवी का मन्दिर, सर्व दुःखों का भण्डार था, वीभत्स था, भयानक था, कारागार के समान था मानो दूसरा बम का स्थान ही हो । हाथ में तलवार लिये हुए राजा को उन दोनों भाई-बहिन ने एक साथ देखा। वह राजा पशु-राशि, भृत्य और स्वजनों के मध्य में स्थित था। उसका दर्शन करना भी भयंकर प्रतीत होता था । विद्वानों में श्रेष्ठ, वाणी बोलने में चतुर अभयरुचि क्षुल्लक निर्भीक होकर राजा को समझाने के लिए मधुर वचनों में आशीर्वाद देते हुए बोले-"जिस धर्म के प्रताप से राज्य शत्रुओं से विरहित हो जाता है, नवनिधि और चौदह रत्नों की प्राप्ति होती है, स्त्री पुत्रादि की प्राप्ति होती है, तीन लोक की सम्पत्ति प्राप्त होती है, तीनों लोकों के स्वामी सेवा करले हैं, तीर्थंकर और इन्द्रादिक पदों की प्राप्ति होती है, उन पदों से पैदा होने वाला सुख मिलता है, समस्त पापों का नाश होता है, बुद्धि पवित्र होती है, मोक्ष-सुख की प्राप्ति होती है और विद्वान तथा देवजन आकर चरणों में नमस्कार करते हैं वह दिव्य धर्म की वृद्धि आपको होवे।” (८५-८८)
राजा मारिदत्त ने बड़े आश्चर्य के साथ शुभ लक्षण वाले उन दोनों अभयरुचि अभयमती को देखा। दोनों ही भाई बहिन चरणों से लेकर मस्तक तक सामुद्रिक शास्त्र में प्रसिद्ध शुभ-चिह्नों से युक्त थे । इन दोनों को देखकर राजा के मन में यह संदेह पैदा होने लगा-क्या साक्षात् शरीर को धारण कर काम और रति ही यहाँ पर आये हैं ? क्या यह देव-युगल है ? अथवा यह कोई विद्याधरों का ही युगल है अथवा मेरे ही भागिनेय-भानजे जैन साधु बन गये हैं जिससे मुझ जैसे कर कामी का मन भी इन पर प्रेम करने को उत्सुक हो रहा है ? अथवा व्यर्थ संकल्प विकल्प करने से क्या प्रयोजन है, मैं भी इन दोनों से प्रश्न पूछता हूँ, जिससे मेरे मन का संदेह मिट जाय । __“आप कौन हैं ? किस कारण से यहाँ पर आये हैं ? बाल्यकाल में ही यह कठोर व्रत पालन करने का आपने कैसे साहस किया ?" उसर में अभयरुचि राजा से बोला-"आपके आगे-धर्म का उपदेश देना, वृद्ध के आगे तरुणी का हावभाव करना जैसा है । हे राजन्, आप पापों से परिपूर्ण हैं और निरन्तर रौद्र ध्यान से युक्त हैं। मेरा चरित पवन पावन है, धर्मवृद्धि का कारण है, संवेग को पैदा करने वाला है, पापों से भय पैदा करने वाला है ।" राजा मारिदत्त भुल्लक के वचन सुनकर हाथ की तलवार को छोड़कर, शान्त चित्त होकर अपने परिवार के साथ दोनों हाथ जोड़कर चरित सुनने को तत्पर हो गया। (ER-RE)