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________________ उपदेश देने के लिए ससंघ भ्रमण करते रहते हैं। ये गाँव प्राकृतिक दृष्टि से रमणीक हैं । दुर्ग, पर्वत, उद्यान आदि से उनकी शोभा द्विगुणित हो गयी है। ग्रामों के बाह्योद्यान मुनिराजों के चरित्र के समान हृदयहारी, तापहारक, तृप्तिकारक और सन्तोषदायक हैं। यहाँ के सरोवर मुनिराजों के प्रशान्त हृदय के समान संयमित और पिपासा के शान्त करने वाले हैं। यहाँ के खेत साधुओं के षडावश्यकों के समान हैं जो यथासमय महाफल देते रहते हैं। इस देश के लोग बड़े सभ्य हैं. सुसंस्कृत और धर्मात्मा हैं । वे कठोर तप कर मोक्ष की साधना करते हैं। कोई मोक्ष चला जाता है और कोई सर्वार्थसिद्धि, नवप्रैवेयक या स्वर्ग में उत्पन्न हो जाता है । कतिपय धार्मिक उत्तम दान के प्रभाव से योगभूमि में सत्कुलों और सम्पन्न परिवारों में जन्म लेते हैं (१०-१८)। उस यौधेय देश के बीच में राजपुर नाम का प्रसिद्ध नगर है , जो राजलक्षणों का अद्वितीय स्थान है; विशाल खाई से तथा ऊँचे-ऊँचे परकोटा और नगर के दरवाजे से शोभायमान है; महलों के अग्रभाग में लगी हुई पताकाओं की पंक्तियों से तथा विशाल जैन मन्दिरों के महाकूटों के अग्रभाग में स्थित ध्वजारूपी करों से मानो पुण्य और वैभवशाली देवों को बुला रहा है । वहाँ तीन तरह के लोग बसते हैं । कोई सम्यग्दष्टि सदाचारी हैं, कोई नाम मात्र से जैन कहलाते हैं और कोई अन्य मतावलंबी हैं। जैन मन्दिर जाने वाली वहाँ की ललनायें इस प्रकार शोभायमान होती हैं मानो हाव-भावों से शोभायमान देवांगनायें हों । ये जैनमन्दिर ' गीतों से, वाद्यों से, स्तुतियों से, स्तोत्रों से, जय-जय की घोषणाओं से और अन्य . विविधताओं से इस प्रकार शोभायमान होते हैं मानो जन-समुदायों से परिपूर्ण दूसरे धर्म के सागर हों। इस नगर में दानी निरतर पात्रों को दान देने पर सत्पात्र की प्रतीक्षा करते हैं और उनके आने पर विशुद्ध मन से मुक्त हस्त से दान देते हैं। कोई जैन उत्तम पात्रों को दान देने से उत्पन्न रत्नवृष्टि को देखकर पुण्यबंध करते हैं। और दूसरे पात्र दान के प्रति सद्भाव व्यक्त करते हैं। यह नगर ज्ञानी, भोगी, '. त्यागी और व्रती गृहस्थ तथा पातिव्रतादि गुणों से अलंकृत महिलाओं से सुशोभित है। यहाँ के कोई-कोई भव्य आत्मा दुर्धर तपों के प्रभाव से मोक्ष प्राप्त करते हैं और कोई व्रतधारी मनुष्य अवेयक विमानों और स्वर्गों में जाते हैं। (१६-२८) इस वैभवशाली राजपुर नगर में मारिदत्त नाम का राजा था जो शत्रुविजेता, रूपवान, प्रतापशाली, दाता, भोक्ता, विविध कलाओं में पारायण, शुभ लक्षण सम्पन्न, वैभवशाली, विशाल परिवारवाला और धीर वीर था। दोष यह था कि वह राजा धर्म और विवेक से रहित था, पापी और अविवेकीजनों से घिरा रहता
SR No.002236
Book TitleYashodhar Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain
PublisherSanmati Research Institute of Indology
Publication Year1988
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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