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कथा-सारांश
भारत सकलक्रीति ने अपने यशोधरचरित को आठ सर्गों में विभक्त किया है। यह कथा जन्म-जन्मान्तर की कथा है जिसे पंचम और षष्ठ सर्ग में निबद्ध किया गया है । शेष सर्ग कथा के पूर्व और उत्तर भाग हैं। यहाँ हम विस्तार से कथा-सारांश प्रस्तुत कर रहे हैं । कथा-सारांश देते समय हमने कवि के भाव और और भाषा का अधिक ध्यान रखा है। इसलिए पाठक को कदाचित् उसका अनुवाद-सा लगेगा। सुविधा की दृष्टि से कोष्ठक में पद्यों की संख्या का भी उल्लेख करते गये हैं। यह इसलिए कि ग्रन्थ का मूल रूप सुरक्षित रखा जा सके।
प्रथम सर्ग
महाकवि सकलकीर्ति यशोधरकथा प्रारम्भ करने के पूर्व मंगल के लिए परम्बसनुसार अपने इष्टदेव तीर्थंकरों की वन्दना करते हैं । उन्होंने आदिनाथ और महाबीर का स्तवन करते हुए कहा कि वे धर्मनायक, विलोकगुरु, अनन्तशानी, सर्वज्ञ और परममुक्त हितचिन्तक हैं । इसी तरह गौतम प्रभृति गणधर भी ज्ञानसागर के पारगामी हैं। उनकी वन्दना करने के बाद ज्ञानगुण की प्राप्ति के लिए सरस्वती की वन्दना की गयी है । वह सरस्वती तीर्थंकर के क्दन रूपी कमल से निकली है और गृहस्थों और मुनियों के लिए मातृस्वरूपा है। ___ इसके बाद कवि ने यशोधरचरित्र को संक्षेप में प्रस्तुत करने की प्रतिज्ञा की है और कहा है कि यह चरित्र परोपकारक है, स्वपरप्रकाशक है और अहिंसा की मूल भावना को स्पष्ट करने वाला है । यहाँ उन्होंने विनम्रतावश अपनी अल्पज्ञता और यशोधरचरित्र की महत्ता की ओर भी संकेत किया है। यहीं से कथा प्रारम्भ होती है (१-६)। ___ इस जम्बूद्वीप में भारतवर्ष में धनधान्य से परिपूर्ण यौधेय नाम का प्रदेश है जिसमें गाँव-गाँव में विशाल जैन मन्दिर हैं और जहाँ मुनिगण भव्य जीवों को