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. भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति के आम्नाय में खण्डेलवालान्वयी अजमेरा गोत्री शाहजी श्री शिवजी की पीढ़ी में जन्मे श्री रायचन्द ने यशोधरचरित्र की प्रतिलिपि कराई। इस श्रावक परिवार का वंशवृक्ष इस प्रकार है.
शिवजी शाह-भार्या सुहागदे
थानसिंह शाह-भार्या थनसूपदे
। । नाथूराम-भार्या नोलादे
रायचन्द–भार्या रायवदे
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१. भागचन्द-भार्या भक्तादे २. रोम्र-भार्या परिणांदे
१. गिरधारलाल . २. मयाराम -भार्या लहोमी ३. मोतीराम-भार्या मुत्कादे, पुत्र
नन्दलाल ४. पेमाशिव ... .
संपादन-प्रक्रिया . . . उपर्युक्त चारों प्रतियाँ, लगता है, किसी एक ही प्रति की प्रतिलिपियाँ हैं। इनमें प्रति क' सं. १६३० की लिखी हुई है जो प्राचीनतम कही जा सकती है । हमने इसी को आदर्श प्रति के रूप में स्वीकारा है। यशोधरचरितम् की. प्रतियाँ देश के कोने-कोने में उपलब्ध होती हैं । कुछ प्रतियाँ सचित्र भी मिलती. हैं । प्रति 'घ' ऐसी ही प्रतियों में एक महत्त्वपूर्ण प्रति है। उसके अन्त में लगभग: चालीस सुन्दर चित्र दिए हुए हैं जिनमें से कुछ चित्र हम मूल ग्रन्थ के पीछे. संयोजित कर रहे हैं । कला की दृष्टि से इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है।
- चारों प्रतियों के मिलान करने पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि प्रतिलिपिकार ने प्रमादवश कहीं-कहीं प्रतिलिपि करने में बेहद भूलें कर दी हैं। इन भूलों में कुछ ऐसी भी भूलें हैं जो ग्रन्थकार के कारण हुई जान पड़ती हैं । हमने उनके शुद्ध. रूप को कोष्ठक के भीतर रखा है और मूल रूप को फुटनोट में इंगित कर दिया है। छन्दोभंगादि की भी अनेक भूलें दृष्टिपथ में आई हैं जिन्हें सुधारने का इसी प्रकार प्रयत्न किया है। आशा है, विद्वद्गण उन्हें और भी परिमार्जित कर लेंगे।