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विधानव्रत उद्यापन ज्ञानदान । शुभं भवतु ।
इसके अनुसार गुरुपरम्परा इस प्रकार है
मूलसंघ, सरस्वतीगच्छ, बलात्कारगण, भ० कुन्दकुन्दाचार्य
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भ० जिणचन्द्र
1
भ० प्रभाचन्द्र
I मण्डलाचार्य धर्मचन्द्र
ललितकीर्ति
" चन्द्रकीर्ति
चन्द्रकीर्ति के शिष्य खंडेलवालान्वयी पाटणी गौत्री ठकुरसी ने पल्यंविधानव्रत के उद्यापन में इस शास्त्र को लिखाकर ब्रह्मरायमल्ल को भेंट किया। इस श्रावकपरिवार का वंशवृक्ष इस प्रकार है
संगही दूलह: - भार्या दूलहदे
सं. नानू--भार्या नारिंगदे
I
सं कोजू - भार्या कोडमदे, द्वि. भार्या हर्षमदे
सं. हीरा
11
सं. ठकुरसी - भार्या लक्षणा
I
सं. ईसर - भार्या ईसरदे
I
सं. रूपसी देवसी - भार्या साहिबदे
I
सं. मानसिंह - भार्या गौरादे
I
सं. गंगा, सं. समत, सं. ठकुरसी - भार्या लक्षणा
यह प्रति दीमक द्वारा खायी हुई है फिर भी अक्षर बच गये हैं। इसके लेखक नेय और प के बीच प्रायः कोई भेद नहीं रखा ।