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२. ख प्रति-इसका प्रारम्भ भी 'ॐ नमः सिद्ध भ्वः' से हुआ है । आमेर शास्त्र भण्डार में सुरक्षित इस प्रति का आकार २७ से.मी.x१३ से.मी., हाशिया दोनों पावों में २-२ से.मी. और ऊपर-नीचे १३-१६ सें.मी., कुल पत्र संख्या ३६ जिनमें प्रथम और अन्तिम पत्र एक और लिखा हुना है । अन्तिम लिपिप्रशस्ति इस प्रकार है___संवत् १६४६ वर्षे बैसाख सुदी सोमवारे मालपुरनगरे पातिसा. अकबरराजे श्रीमूलसंघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्रीकुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्री पद्मनंदिदेव, तस्पट्ट भट्टारक श्री चन्द्रकीर्तिदेव तदाम्नाये खंडेलवालान्वये इवं यशोधरचरित्रं ब्र. लोहट लिखापितं स्वकीयं पठनार्थ ।।
इसके अनुसार कुन्दकुन्दाचार्यान्वय में भ. पद्मनन्दि के शिष्य भ. चन्द्रकीति के अनुयायी खंडेलवालान्वयी ब्र. लोहट ने इस ग्रन्थ को स्वयं के पढ़ने के लिए लिखाया । लगता है, यह प्रशस्ति बाद में जोड़ी गयी है। प्रति सुवाच्य और पूर्ण है। पद्यसंख्या और पुष्पिकावाक्य लाल स्याही से लिखे गये हैं । __३. ग प्रति-यह प्रति भी आमेर शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है । आकार १७ से.मी.X१३ से.मी., दोनों पावों में हाशिया ३-३ से.मी., ऊपर १ से.मी.
और नीचे १३ से.मी., पत्र संख्या ४७ जिनमें प्रथम और अंतिम पत्र एक ओर लिखा हुआ है। लिपि-प्रशस्ति में संवत् का कोई उल्लेख नहीं, मात्र आचार्य ज्ञानकीर्ति के शिष्य पं. खेतसी का उल्लेख किया गया है । प्रति अच्छी है, पूर्ण है। हाशिया में कहीं-कहीं कुछ टिप्पणियाँ-सी दी हुई हैं। ज्ञानकीति ने संवत् १६५६ में एक यशोधरचरित्र संस्कृत में लिखा था अतः इस प्रति का समय लगभग -संवत् १६५० होना चाहिए। . ४. घ प्रति—यह प्रति सचित्र है जो श्री मिलापचंद गोधा के सौजन्य से लूणकरण पाण्ड्या दि० जैन मन्दिर जयपुर से प्राप्त हुई है। इसकी कुल पत्रसंख्या ४४ है जिनमें दोनों ओर काली स्याही से लिखा गया है। प्रत्येक पत्र की लम्बाई १० इं.
और चौड़ाई ६ इं. है जिनमें चारों ओर बेलबूटा भरा ३ ई. का सुसज्जित हाशिया छूटा हुआ है। शेष भाग में १२ पंक्तियाँ हैं । हर पंक्ति में लगभग ४० शब्द हैं । लिखावट सुन्दर और सुवाच्य है । इसमें लगभग ३० भावात्मक चित्र हैं जिनका चित्रकला की दृष्टि से विशेष महत्त्व है। प्रति का प्रशस्ति भाग प्रकार है
सो व्यांछी सुव्रतः सश्वत् भव्यानां भक्तिकारिणे । यस्य तीर्थे समुत्पन्नं यशोधरमहीभुजः ॥१॥