SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 679
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४.४३९]. प्राकृतव्याकरणम् । एतत्त वारि घरि लच्छि विसण्ठुल धाइ । पिअ - पब्भट्ट व गोरडी निश्चल केहि वि न ठाइ ॥ १ ॥ स्व-तलोः प्पणः ॥ ४३७॥ अपभ्रंशे त्वतलोः प्रत्येययोः प्पण इत्यादेशो भवति ॥ वड्डप्पणु परि पाँविअइ [३६६.१] ।। प्रायोधिकारात् । वङुत्तणहों तणेण [ ३६६.१] ॥ तव्यस्य इएव्वेउं एव्व एवाँ ।। ४३८ ॥ ६२९ अपभ्रंशे तंव्यप्रत्ययस्य इएर्व्वउं एवँउ एवा इत्येते त्रय आदेशा भवन्ति ॥ ऍउ गृहेप्पिणु धुं मई जइ प्रिउ उव्वारिज्जइ । महु करिएवँउँ किं पि ण वि मरिव्वउँ' पर देर्जंइ ॥ १ ॥ देसुच्चाणु सिहि- कढणु घण-कुट्टेणु जं लोइ । मंजिऍ अइरत्तिए सव्व सहेव्वउँ होइ ॥ २ ॥ सोवा पर वारिआ पुष्फे वहिं समाणु । जग्गेवा पुणु को धरइ जइ सो वेउ पमाणु ॥ ३॥ क्व इ-इउ - इवि - अवयः ॥ ४३९ ॥ अपभ्रंशे क्त्वाप्रत्ययस्य इ इउ इवि अवि इत्येते चत्वार आदेशा भवन्ति ॥ इ । हिअड़ा जइ वेरिअ घणा तो किं अब्भि चडाहुं । अम्हहिं बे हत्था जइ पुणु मारि मराहुं ॥ १ ॥ इउ । गय-घड भज्जिउ जन्ति [ ३९५.५ ] ॥ १ P कह; B कहिं नविठा° २ A प्रत्ययस्य; B प्रत्ययोः तण. ५ A एव्वओ एव्वओ. ६ B एम्बउं. ७ PB एवाः १० PB दिज्जइ. ११ A चाडुणु. १२B कुट्टण 'इहिं. १५ B पुण. १६ P अम्हहं. ३ A रिप्रावि. ४B ८ A ° ओ. ९ B ध्रु.. १३ B° हैवउं. १४ A
SR No.002235
Book TitleKumarpal Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar Pandurang Pandit
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1936
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy