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४.३३२] . प्राकृतव्याकरणम् ।
स्यादौ दीर्घ-हस्वौ ॥ ३३० ॥ अपभ्रंशे नानोन्त्यस्वरस्य दीर्घह्रस्वौ स्यादौ प्रायो भवतः ॥ सौ ॥
ढोल्ला सामला धण चम्पा-वण्णी ।
णाइ सुवण्ण-रेह कस-वट्टइ दिण्णी ॥ १ ॥ आमन्त्र्ये ॥
ढोल्ला मैइँ तुहुँ बारिया मा कुरु दीहा माणु ।
निदए गमिही रत्तडी दडवड होइ विहाणु ॥ २॥ लियाम् ॥ .
बिट्टीए मइ भणिय हुँ मा करु वड्की दिट्टि ।
पुत्ति सकणी भल्लि जिवँ मारइ हिअइ पइट्ठि ॥ ३ ॥ जसि ॥
.. एइ ति घोडा एह थलि एइ ति निसिआ खग्ग।
- एत्थु मुणीसिम जोणिअइ जो न वि वालइ वग्ग ॥ ४ ॥ एवं विभक्त्यन्तरेष्वप्युदाहार्यम्॥ . ‘स्यमोरस्योत् ॥ ३३१ ॥ अपभ्रंशे.अकारस्य स्यमोः परयोः उकारो भवति ॥
दहमुडे भुवण-भयंकर तोसिअ-संकरु णिग्गउ रहे-वरि चडिअउ । चउमुहे छंमुहे झाइवि एक्कहिं लाइवि णावइ दइवें घडिअउ ॥१॥
सौ पुंस्योद्वा ॥ ३३२ ॥ अपभ्रंशे पुल्लिङ्गे वर्तमानस्य नानोकारस्य सौ परे ओकारो वा भवति ।
अगलिअ-नेह-निवट्टाहं जोअण-लक्खु वि जोडे । वरिस-सएण वि जो मिलइ सहि सोक्खहँ सो ठाँउ ॥ १ ॥
१P नाइ. २ A मई; B मइ. ३ PB वारिओ. ४ B करु. ५ P तुहु; B तुहं. ६ B वकिदिट्टी. ७ B°कण्णिभ'. ८ A जिम्ब; B जिम. ९ A हिअय;
B हीअइ. १० B एत्थ. ११ B जाणीअइ. १२ B °मुह. १३ B रहेवडिं च'. . १४ AB°रो भ. १५ A जाओ. १६ Bढाउ; A ठाओ.