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हेमचन्द्राचार्यविरचितं
[ ४.२३८
नेइ । नेन्ति । उड्डेइ | उड्डेन्ति । मोत्तूण । सोऊण ॥ कचिन्न भवति । नओ । उड्डीणो ॥
स्वराणां स्वराः ॥ २३८ ॥
धातुषु स्वराणां स्थाने स्वरा बहुलं भवन्ति । हवइ । हिवइ ॥ चिणइ । चुइ || सद्दहणं | सहाणं || धावइ । धुवइ ॥ रुवइ । रोवइ ॥ क्वचिन्नित्यम् । देइ । लेइ । विहेइ । नासइ || आर्षे । बेमि ॥ -
व्यञ्जनाददन्ते ।। २३९ ॥
व्यञ्जनान्ताद्धातोरन्ते अकारो भवति ।। भमई। हसइ | कुणइ | चुम्बइ | भणइ | उवसमइ । पावइ । सिचाइ । रुन्धइ । मुसइ । हरइ । करइ || शबदीनां च प्रायः प्रयोगो नास्ति ॥
स्वरादनतो वा ।। २४० ॥
अकारान्तवर्जितात्स्वरान्ताद्धातारेन्ते अकारागमो वा भवति ॥ पाइ पाअइ | धाइ धाअइ । जाइ जाअइ | झाइ झाअइ । जम्भाइ जम्भाअइ | उव्वाइ उव्वाअइ । मिलाइ मिलाइ | विक्केइ विक्केअइ । होऊण होऊण || अनत इति किम् । चिइच्छइ । दुगुच्छइ ॥
चि-जि-श्रु-हु-स्तु-लू-पू-धूगां णो ह्रस्वश्च ।। २४१ ॥
च्यादीनां धातूनामन्ते णकारागमो भवति एषां स्वरस्य चे हस्वो भवति || चि । चिणइ || जि । जिणइ ॥ श्रु । सुणइ ॥ हु । हुणइ ॥ खँ । थुणइ || छु । लुणइ ॥ पू | पुणइ ॥ धूग् । धुणइ ॥ बहुलाधिकारात्क्वचिद्विकल्पः । उच्चिणइ | उच्चइ || जेऊण । जिणिऊण || जयइ | जिइ ॥ सोऊण । सुणिऊण ॥
न वा कर्म-भावे व्वः क्यस्य च लुक् ॥ २४२ ॥
च्यादीनां कर्मणि भाँवे च वर्तमानानामन्ते द्विरुक्तो वकारागमो
१ A°इ । कणइ | चुं. २ B शवा° ३ AP होअऊण ४B ५ PB च दीर्घस्य हृ. ६ Bटु. ७ B°वे वर्त°.