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________________ ५७६ हेमचन्द्राचार्यविरचितं [ ४.२३८ नेइ । नेन्ति । उड्डेइ | उड्डेन्ति । मोत्तूण । सोऊण ॥ कचिन्न भवति । नओ । उड्डीणो ॥ स्वराणां स्वराः ॥ २३८ ॥ धातुषु स्वराणां स्थाने स्वरा बहुलं भवन्ति । हवइ । हिवइ ॥ चिणइ । चुइ || सद्दहणं | सहाणं || धावइ । धुवइ ॥ रुवइ । रोवइ ॥ क्वचिन्नित्यम् । देइ । लेइ । विहेइ । नासइ || आर्षे । बेमि ॥ - व्यञ्जनाददन्ते ।। २३९ ॥ व्यञ्जनान्ताद्धातोरन्ते अकारो भवति ।। भमई। हसइ | कुणइ | चुम्बइ | भणइ | उवसमइ । पावइ । सिचाइ । रुन्धइ । मुसइ । हरइ । करइ || शबदीनां च प्रायः प्रयोगो नास्ति ॥ स्वरादनतो वा ।। २४० ॥ अकारान्तवर्जितात्स्वरान्ताद्धातारेन्ते अकारागमो वा भवति ॥ पाइ पाअइ | धाइ धाअइ । जाइ जाअइ | झाइ झाअइ । जम्भाइ जम्भाअइ | उव्वाइ उव्वाअइ । मिलाइ मिलाइ | विक्केइ विक्केअइ । होऊण होऊण || अनत इति किम् । चिइच्छइ । दुगुच्छइ ॥ चि-जि-श्रु-हु-स्तु-लू-पू-धूगां णो ह्रस्वश्च ।। २४१ ॥ च्यादीनां धातूनामन्ते णकारागमो भवति एषां स्वरस्य चे हस्वो भवति || चि । चिणइ || जि । जिणइ ॥ श्रु । सुणइ ॥ हु । हुणइ ॥ खँ । थुणइ || छु । लुणइ ॥ पू | पुणइ ॥ धूग् । धुणइ ॥ बहुलाधिकारात्क्वचिद्विकल्पः । उच्चिणइ | उच्चइ || जेऊण । जिणिऊण || जयइ | जिइ ॥ सोऊण । सुणिऊण ॥ न वा कर्म-भावे व्वः क्यस्य च लुक् ॥ २४२ ॥ च्यादीनां कर्मणि भाँवे च वर्तमानानामन्ते द्विरुक्तो वकारागमो १ A°इ । कणइ | चुं. २ B शवा° ३ AP होअऊण ४B ५ PB च दीर्घस्य हृ. ६ Bटु. ७ B°वे वर्त°.
SR No.002235
Book TitleKumarpal Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar Pandurang Pandit
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1936
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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