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________________ 56 जैन - न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान सर्वज्ञ को सिद्ध किया है । चार्वाकदर्शन-भूतचैतन्यवाद : वर्तमान में सर्वत्र जो भौतिकवाद दृष्टिगोचर हो रहा है वही पुराना चार्वाक दर्शन है। चार्वाक दर्शन का लक्ष्य है यावज्जीवेत् सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् । भस्मीभूतस्य ं देहस्य पुनरागमनं कुतः ।। खाओ, पियो और मस्त रहो। eat, drink and be merry. चार्वाक का कहना है कि शरीर से भिन्न कोई आत्मा नहीं है । पृथिवी, जल, अग्नि और वायु - इन चार भूतों के एक साथ मिलने से चैतन्य - शक्ति की उत्पत्ति होती है । जैसे महुआ आदि पदार्थों के सम्मिश्रण से मदिरा की उत्पत्ति होती है । चार्वाक मत में आत्मा के अभाव - में न परलोक है, न पुण्य-पाप है और न कोई मोक्ष है। उनके यहाँ तो मृत्यु का नाम मोक्ष है। चार्वाक मत का निराकरण करते हुए अकलंकदेव कहते हैं कि चार्वाक का उक्त कथन अविचारित रमणीय है । भूतों से चैतन्य की उत्पत्ति किसी भी प्रकार सम्भव नहीं है। दोनों विजातीय होने से उनमें उपादान - उपादेयभाव नहीं बन सकता है । जिस प्रकार बालु से तेल की उत्पत्ति सम्भव नहीं है उसी प्रकार भूतों से चैतन्य की उत्पत्ति सम्भव नहीं है। अकलंकदेव ने न्यायविनिश्चय में बतलाया है किं चैतन्य पुरुष का ही स्वभाव है, पृथिवी आदि भूतों का नहीं । वहाँ पूर्वोत्तर पक्ष इस प्रकार है भूतानामेव केषाञ्चित् परिणामविशेषतः कायश्चित्तकारणम्। जीवच्छरीरधर्मोऽस्तु चैतन्यं व्यपदेशतः।। अन्तः ज्योति स्वतः सिद्धं चैतन्यं भूतेभ्यः परम् ।। इस प्रकार अकलंक ने चार्वाक के भूतचैतन्यवाद का निराकरण किया है। तत्त्वार्थाधिगमभाष्य और द्वादशारनयचक्र : श्वेताम्बर-परम्परा में तत्त्वार्थसूत्र पर एक विस्तृत भाष्य ग्रन्थ पाया जाता है, जिसका नाम तत्त्वार्थाधिगम भाष्य है उक्त भाष्य ग्रन्थ का अकलंकदेव ने अध्ययन किया था। इसका प्रमाण यह है कि उन्होंने तत्त्वार्थवार्तिक में कई स्थलों पर भाष्यकार के मन्तव्यों की आलोचना की है। इसी प्रकार श्वेताम्बर आचार्य मल्लवादी ने नयों के विशद विवेचन के लिए 'द्वादशारनयचक्र' नामक ग्रन्थ लिखा था और अकलंक ने उस ग्रन्थ का भी अध्ययन किया था तथा वे उससे प्रभावित भी हुए थे । इसीलिए अकलंक ने नयों का विशेष विवरण जानने के लिए 'द्वादशारनयचक्र' देखने को कहा हैतथाहि .
SR No.002233
Book TitleJain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1999
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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