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________________ अकलंकदेव का दर्शनान्तरीय अध्ययन 55 है, रागादिदोषों से दूषित है, वक्ता है, जैसे रथ्यापुरुष। पुरुषत्वात्, रागादिदोषबूषितत्वात्, वक्तृत्वात् इत्यादि हेतुओं के कहने के बाद कुमारिल और भी कहते हैं प्रत्यक्षाद्यविसंवादि प्रमेयत्वादि यस्य च। सद्भाववारणे शक्तं को नु तं कल्पयिष्यति।।। अर्थात् जब प्रत्यक्षादि प्रमाणों से अबाधित प्रमेयत्वादि हेतु ही सर्वज्ञ के सद्भाव को रोकने में समर्थ हैं तब कौन उसे सिद्ध करने की कल्पना करेगा? । ___ इसके उत्तर में अकलंकदेव अष्टशती में कहते हैं "तदेवं प्रमेयत्वसत्त्वादिर्यत्र हेतु लक्षणं पुष्णाति तं कथं चेतनः प्रतिषेद्बुमर्तति संशयितुं वा।" जब प्रमेयत्व, सत्त्व आदि हेतु अनुमेयत्व का समर्थन करते हैं तब कौन चेतन इस सर्वज्ञ का प्रतिषेध या उसके सद्भाव में संशय कर सकता है। यहाँ यह स्मरणीय है कि स्वामी समन्तभद्र ने आप्तमीमांसा में अनुमेयत्व हेतु के द्वारा सर्वज्ञ की सिद्धि की है, उसी अनुमेयत्व की चर्चा अकलंक ने अष्टशती में की है। सर्वज्ञ का प्रतिषेध करते के लिए कुमारिल कहते हैं - दशहस्तान्तरं व्योम्नि यो नामोत्प्लुत्य गच्छति। . ' न योजनशतं गन्तुं शक्तोऽभ्यासशतैरपि।। जो व्यक्ति आकाशं में दस हाथ ऊपर उछल सकता है वह सैकड़ों अभ्यास के द्वारा भी सौ योजन ऊपर नहीं उछल सकता है अर्थात्. कोई पूर्ण ज्ञान प्राप्त करके सर्वज्ञ नहीं बन सकता है। . इसके उत्तर में अकलंकदेव कुमारिल का उपहास करते हुए न्यायविनिश्चय में । कहते हैं . दशहस्तान्तरं व्योम्नो नोत्प्लवेरन् भवादृशः। योजनानां सहनं किं वो वोत्प्लवेदधुना नरैः ।। - अर्थात् शरीर के भार के कारण जब आप दस हाथ भी ऊँचा नहीं कूद सकते तब दूसरों से हजार योजन ऊँचा कूदने की आशा करना व्यर्थ है। अकलंक ने यह भी बतलाया है कि मीमांसकों ने सर्वज्ञ का अभाव सिद्ध करने के लिए जो वक्तृत्व आदि हेतु दिये हैं वे हेतु नहीं, किन्तु हेत्वाभास हैं। उनमें • अनैकान्तिक आदि कई दोष आते हैं। तथाहि सर्वज्ञप्रतिषेधे. तु संदिग्धाः वचनादयः। इस प्रकार अकलंकदेव ने सिद्धिविनिश्चय के सर्वज्ञ-सिद्धि प्रकरण में मीमांसक-मत का निराकरण करके त्रिकाल और त्रिलोकवर्ती समस्त पदार्थों के ज्ञाता
SR No.002233
Book TitleJain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1999
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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