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________________ आचार्य अकलंकदेव के विशेषण एवं उपाधियाँ 'भाष्यकार' आदि के रूप में उनकी स्तुति की है । ' उत्तरवर्ती अनेक आचार्यों/ कवियों / लेखकों ने उन्हें महान् तार्किक, दार्शनिक, वादविजेता, अद्भुत प्रभाव सम्पन्न, जिनतुल्य, युगप्रवर्तक, तार्किक, लोकमस्तकमणि, तर्कभूवल्लभ, अकलंकधी, बौद्धबुद्धिवैधव्यदीक्षागुरुः, विद्वहृदयमणिमाला, नरसुरेन्द्रवन्दनीय, तर्काब्जार्कप्रमाणवेत्ता आदि के रूप में स्मरण किया है । 31 इस विषय में और अधिक विस्तार से अध्ययन किया जाय तो अकलंक के अगाधं पाण्डित्य के सन्दर्भ में नये-नये तथ्य उद्घटित हो सकते हैं । १. अष्टसहस्र टिप्पण, पृ० १, २, ८० आदि
SR No.002233
Book TitleJain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1999
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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