SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 28 जैन-न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान · अकलंकदेव की निर्विवाद विद्वत्ता, तार्किकता और न्यायशास्त्र विशेषतः जैन न्याय के क्षेत्र में अप्रतिम अवदान के कारण परवर्ती अनेक आचार्यों ने उनका उल्लेख बड़े ही सम्मान के साथ किया है, साथ ही अनेक उपाधियों से उन्हें अलंकृत किया है। विशेषतः दक्षिण भारत के कर्नाटक प्रदेश में स्थित अनेक मन्दिरों-बस्तियों में उत्कीर्ण विभिन्न शिलालेखों में अकलंक का नाम भगवान् महावीर की विश्रुत परम्परा में गौरव के साथ लिया गया है। अनेक ग्रन्थों में उनके नाम का उल्लेख बड़े ही सम्मान के साथ किया गया है। इनमें अनेक उपाधियों के साथ उनका उल्लेख है, यहाँ कुछ उपाधियों के नाम उल्लेखनीय हैं। हुम्मच के पञ्चबस्ति-प्रांगण में १०७७ ई० में लिखित संस्कृत तथा कन्नड भाषामय लेख में उन्हें 'स्याद्वादामोघजिहे' तथा 'वादिसिंह' उपाधियों से अलंकृत किया गया है।' कल्लूर गुड्ड (शिमोगा परगना) में सिद्धेश्वर मन्दिर की पूर्व दिशा में पड़े हुए पाषाण पर उत्कीर्ण लेख में अकलंक को 'तार्किक चक्रेश्वर' के रूप में उल्लिखित किया, गया है। यह शिलालेख ११२१ ई० का है। चन्द्रगिरि पर्वत की पार्श्वनाथ वसदि में एक स्तम्भ पर लिखित मल्लिषेण प्रशस्ति (शक सं० १०५०) में अकलंक की तारा-विजेता के रूप में स्तुति की गई है। यथा 'तारा येन विनिर्जिता घट-कुटी गूढावतारा समं बौद्धैर्यो धृत-पीठ-पीडित कुदृग्देवास्तसेवाञ्जलिः । प्रायश्चित्तमिवांघ्रि वारिजरज-स्नानं च यस्यांचरत् दोषाणां सुगतस्य कस्य विषयो देवाकलंकः कृतीः ।। उक्त शिलालेख से यह भी ज्ञात होता है कि उन्होंने राजा हिमशीतल की सभा में बौद्धों को परास्त किया था। जैसा कि अकलंकदेव ने स्वयं कहा है 'नाहंकारवशीकृतेन मनसा न द्वेषिणां केवलं नैरात्म्यं प्रतिपद्य नश्यति जने कारुण्यबुद्ध्या मया। राज्ञः श्रीहिमशीतलस्य सदसि प्रायो विदग्धात्मनो बौद्धान्यान्सकलान्विजित्य सुगतः पादेन विस्फोटितः।। बेलूर के शक सं० १०५६ के शिलालेख में उन्हें 'जिन-समय-दीपक' कहा गया १. जैन शिलालेख संग्रह, द्वितीय भाग २१३, पृष्ठ २६३ २. वही,द्वि० भाग, २७७, पृ० ४१६ ३. वही, प्र० भाग, पृष्ठ १०४ ४. वही, प्र० भाग, पृष्ठ १०५
SR No.002233
Book TitleJain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1999
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy