SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य अकलंकदेव के विशेषण एवं उपाधियाँ के नाम उल्लेखनीय हैं। भारतीय विद्वानों में डा० के० बी० पाठक, डा० सतीशचन्द्र विद्याभूषण, डॉ० आर० जी० भाण्डारकर, पं० नाथूराम प्रेमी, पं० कामताप्रसाद, पं० सुखलाल संघवी, डॉ० बी० एस० सालेतोर, पं० जुगलकिशोर मुख्तार, पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री, डॉ० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य, डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन आदि ने इस विषय में गहन अध्ययन किया है। इस विषय में दो मत प्रमुख रूप से सामने आते हैं। प्रथम मत के अनुसार अकलंक का समय सातवीं शताब्दी है। इसके समर्थक पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री, श्रीकष्ट शास्त्री, आर० नरसिंहाचार्य, पं० जुगलकिशोर मुख्तार, डॉ० ए० एन० उपाध्ये, डॉ० ज्योतिप्रसाद आदि है। द्वितीय मत के अनुसार अकलंक का समय आठवीं शती का उत्तरार्ध है। इस मत को मानने वालों में पं० नाथूराम प्रेमी, डॉ० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य, डॉ० के० बी० पाठक, डॉ० कीथ, डॉ० थामस, डॉ० भाण्डारकर आदि के नाम उल्लेखनीय है। .. अकलंक के जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रसंग उनके द्वारा जैनधर्म की रक्षा किया जाना है, जिसमें उनके भाई निकलंक का प्राणोत्सर्ग अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना है। अकलंक द्वारा बौद्धों से शास्त्रार्थ कर उन्हें पराजित करना तथा तारादेवी जो परदे के पीछे घट में विद्यमान थीं और शास्त्रार्थ कर रही थीं, के घट को नष्ट करना भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना है। .. - पं० कैलाशचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री ने अकलंक को दक्षिण भारत का निवासी बताया है। उन्होंने कथाकोष में आई अकलंक विषयक कथाओं का, मान्यखेट आदि के सन्दर्भ को लेकर उसकी प्रामाणिकता में सन्देह व्यक्त किया है। पं० जी के अनुसार अकलंक राजपुत्र थे और उनके पिता का नाम लघुहव्व था।' जैन न्यायशास्त्र को जो योगदान अकलंकदेव ने दिया है वह अपना उदाहरण आप है। उन जैसा तार्किक शायद ही जैनन्याय के इतिहास में कोई हो। उनके द्वारा दी गई प्रमाण व्यवस्था को दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों के आचार्यों ने अपनीअपनी प्रमाण-मीमांसा विषयक कृतियों में बिना किसी हेर-फेर के स्वीकार किया है। आचार्य अकलंकदेव की कृतियों में तत्त्वार्थवार्तिक (अपरनाम तत्त्वार्थवार्तिकव्याख्यालंकार, राजवार्तिक या तत्त्वार्थराजवार्तिक), अष्टशती, लघीयस्त्रय (सवृत्ति), न्यायविनिश्चय, सिद्धिविनिश्चय (सवृत्ति) और प्रमाण-संग्रह उपलब्ध हैं। इनके अतिरिक्त स्वरूप-संबोधन, अकलंक-स्तोत्र, अकलंक-प्रतिष्ठापाठ और अकलंक प्रायश्चित्त उपलब्ध किन्तु विवादग्रस्त कृतियाँ हैं। १. न्यायकुमुदचन्द्र की प्रस्तावना, पृ० २७
SR No.002233
Book TitleJain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1999
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy