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________________ आचार्य अकलंकदेव के विशेषण एवं उपाधियाँ डॉ० कपूरचंद जैन __ जैनन्याय के पितामह प्रखर तार्किक, सकलतार्किकचक्रचूडामणि, जिनाधीश, अशेषकुतर्कविभ्रमतमोनिर्मूलोन्मूलक-तार्किक-लोकमस्तकमणि, समदर्शीवार्तिककार, स्याद्वादविद्याधिपति, तर्कभूवल्लभ, वादिसिंह, स्याद्वादामोघाजिहे, तार्किक-चक्रेश्वर-ताराविजेता, जिनसमयदीपक, जिनमतकुवलयशशांक, जिनशासनालंकर्ता, महामति भट्टाकलंक, सौगतादि-. खण्डनकर्ता, समन्तादकलंकः, शास्त्रविमुनीनां अग्रेसरः, सूरि, मिथ्यान्धकार - विनाशकः, अखिलार्थप्रकाशकः, स्याद्वादन्यायवादि, अशेषकुतर्कविभ्रमतमोनिर्मूलनकर्ता अगांध-. कुनीतिसरित्शोषकः, स्याद्वादकिरणप्रसारकः, अकलंकभानुः, तर्काब्ज़ार्क, विद्वद्यमणिनालः प्रमाणवेत्ता, नरसुरेन्द्रवन्दनीयः तार्किकलोकमस्तकमणिः, समस्तमतकादिकरीन्द्रदर्पमुन्मूलकः, स्याद्वादकेसरी, पंचानन, अकलंकशशांकः, परहितावदानदीक्षितः, वृत्तिकार, विगलिततिमिरादिकलंकः, निरस्तग्रहोपरागाद्युपद्रवः, विगलितज्ञानावरणादिद्रव्यकर्मात्मकलंकः, सकलतार्किकचूडामणि, जिनतुल्यः, युगप्रवर्तक, वादविजेता, अकलंकधीः, भाष्यकारः, अकलंकब्रह्म, बौद्धबुद्धिवैधव्यदीक्षागुरूः, सकलतार्किकचक्रचूडामणिमरीचिमेचकितनखकिरणः आदि उपाधियों से अलंकृत अकलंकदेव ने किस काल में भारत वसुन्धरा को अपने जन्म से पवित्र बनाया था, यह ‘इदमित्थं' कह पाना आज भी सम्भव नहीं है। हमारे प्राचीन आचार्यों ने भव्य जीवों के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने, कुवादियों के कुतर्क-प्रासादों को ध्वस्त करने, जैन धर्म-न्याय को विश्वविजयी बनाने के बाद भी अपने सन्दर्भ में कहीं कुछ उल्लेख नहीं किया है। इसे काल का प्रभाव कहा जाये या उन आचार्यों/विद्वानों/इतिहासविदों/आलोचकों की निस्पृहता। फिर भी विद्वानों ने उनके पूर्वापर प्रसंगों/ उल्लेखों के आधार पर उनका समय निर्धारित करने का सफल प्रयत्न किया है। अकलंकदेव के समय के सन्दर्भ में न केवल भारतीय विद्वानों अपितु पाश्चात्य विद्वानों ने भी पर्याप्त गवेषणा की है। विदेशी विद्वानों में डॉ० पीटर्सन, डॉ० लुइस राइस, डा० एम० विन्टरनित्ज, डा० ए० बी० कीथ, डा० एफ० डब्ल्यू० थॉमस आदि * अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, कुन्दकुन्द महाविद्यालय, खतौली (उ०प्र०)
SR No.002233
Book TitleJain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1999
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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