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जैन-न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान
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जिनवाणी स्तवन के साथ सत्र सम्पन्न हुआ।
पंचम सत्र दिनांक २८-१०-६६ को रात्रि ७ बजे से पू० उपाध्याय ज्ञानसागर महाराज की मौन उपस्थिति के बीच डॉ० अशोक कुमार जैन (लाडनूं) के मंगलाचरण से सत्र प्रारम्भ हुआ। इस पंचम सत्र की अध्यक्षता डॉ० कस्तूरचन्द कासवीवाल (जयपुर) तथा संयोजन डॉ० कमलेशकुमार (वाराणसी) ने किया।
पंचम सत्र के पत्रवाचक विद्वान एवं उनके विषय१. प्राचार्य पं० नरेन्द्रप्रकाश जैन, फिरोजाबाद जिनशासन प्रभावक आ० अकलंकदेव २. डॉ० भागचन्द भास्कर, नागपुर (महाराष्ट्र) । __ “विज्ञानवाद पर आ० अकलंक और
उनके टीकाकार" ३. डॉ० नन्दलाल जैन, रीवा (म० प्र०) “आ० अकलंक और जीव की परिभाषा" ४. पं० निर्मल जैन, सतना
“अनेकान्त के अद्वितीय व्याख्याकार आ०
अकलंकदेव इन आलेखों पर विद्वानों में चर्चा-परिचर्चा हुई। सभाध्यक्ष डॉ० कासलीवाल जी ने आलेखों की समीक्षा कर सभी विद्वानों का साहित्य साधना हेतु आहान किया।
षष्ठ सत्र - दिनांक २६-१०-६६ को श्री दि० जैन धर्मशाला में पू० उपाध्याय ज्ञानसागर महाराज एवं वैराग्यसागर महाराज के मंगल सान्निध्य में श्री पं० मूलचन्द शास्त्री टीकमगढ़ (म० प्र०) के मंगलाचरण से षष्ठ सत्र प्रारम्भ हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता 'जैन गजट' के यशस्वी सम्पादक प्राचार्य पं० नरेन्द्र प्रकाश फिरोजाबाद (उ० प्र०) ने की एवं संयोजन पं० निर्मल जैन सतना ने किया।
षष्ठ सत्र के शोध पत्र वाचक विद्वान एवं उनके विषय१ पं० निहालचन्द जैन, प्राचार्य, बीना (म० प्र०) “आचार्य अकलंकदेव कृत तत्त्वार्थवार्तिक
में अजीव द्रव्य की वैज्ञानिकता” २ डॉ० सुरेन्द्र भारती, बुरहानपुर (म० प्र०) “आ० अकलंकदेव कृत तत्त्वार्थवार्तिक
में प्रतिपादित मानवीय मूल्य" ३ डॉ० अशोक कुमार जैन, लाडनूं (राज०) “अनेकान्त के प्रतिष्ठापक आचार्य
अकलंकदेव”