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जैन-न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान
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द्वितीय सत्र के शोध निबन्ध वाचक और उनके विषयः१. डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल, जयपुर (राज) हिन्दी कथा साहित्य में आ० अकलंकदेव
का व्यक्तित्व एवं कृतित्व २. डॉ० रमेशचन्द जैन, बिजनौर (उ० प्र०) “आचार्य अकलंकदेव कृत तत्त्वार्थवार्तिक
के कतिपय वैशिष्ट्य” ३. डॉ० कमलेश कुमार जैन, वाराणसी “लघीयस्त्रय का दार्शनिक वैशिष्ट्य ४. डॉ० सुरेशचन्द जैन, वाराणसी “आचार्य अकलंकदेव और उनके
प्रमाणसंग्रह का वैशिष्ट्य” सत्र के अध्यक्ष प्रो० उदयचन्द जी ने कहा कि मुझे आज १६८६ में आयोजित जैन न्याय विद्या वाचन आयोजन का स्मरण हो रहा है। वह कार्यक्रम भी पू० उपाध्यायश्री की प्रेरणा से ललितपुर में आयोजित हुआ था। संगोष्ठी में पठित आलेखों की समीक्षा करते हुए अपने वक्तव्य में आ० अकलंक की ऐतिहासिकता तथा उनकी दार्शनिक विशेषताओं का सम्यक् प्रकाश
डाला।
तृतीय सत्र दिनांक २८-१०-६६ को प्रातः ८ बजे से दि० जैन धर्मशाला, शाहपुर में पू० मुनिद्वय के मंगल-सान्निध्य में बहिन अनीता के मंगलाचरण से तृतीय सत्र का प्रारम्भ हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो० डॉ० भागचन्द भास्कर (नागपुर) एवं संयोजन डॉ० रमेशचन्द (बिजनौर) ने किया। तृतीय सत्र के पत्रवाचक विद्वान एवं उनके विषय१.. प्रो० उदयचन्द जैन, सर्वदर्शनाचार्य, वाराणसी आ० अकलंकदेव का दर्शनान्तरीय
अध्ययन ...२. पं० शिवचरण लाल, मैनपुरी
कुशल टीकाकार आ० अकलंकदेव ३. प्रो० बी०बी. रानाडे, लाडनूं (राज) सिद्विविनिश्चय का दार्शनिक वैशिष्ट्य ४. डॉ० सुपार्श्वकुमार, बडौत (उ० प्र०) आ० अकलंकदेव पर पूर्वाचार्यों का प्रभाव
इन सभी लेखों पर विद्वानों ने परिचर्चा की। अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ० भागचन्द भास्कर ने कहा कि आ० अकलंकदेव ज्येष्ठ, वरिष्ट एवं गरिष्ठ आचार्य हैं। अनेकान्त जैनदर्शन का प्रमाण है। आज जैन साहित्य एवं संस्कृति के संरक्षण की परम आवश्यकता है। - परम पूज्य उपाध्याय ज्ञानसागर महाराज ने मंगल उद्बोधन में कहा कि न्याय के विषय पर लेखनी चलाना श्रमसाध्य कार्य है। आज प्राचीन संस्कृति को सुरक्षा अत्यन्त आवश्यक है।