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________________ xxiv जैन-न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान ___ संगोष्ठी में रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए संयोजक डॉ० अशोककुमार जैन ने कहा कि न्याय विद्या के कारण ही जैनधर्म सुरक्षित रहा है। आचार्य अकलंकदेव जैन न्याय के अप्रतिम आचार्य हैं जिन्होंने अनेकों दार्शनिक ग्रन्थों का प्रणयन कर सद्बोध दिया। इस अवसर पर जैनदर्शन के सप्रसिद्ध मनीषी प्रो० उदयचन्द वाराणसी ने कहा कि भगवान ऋषभदेव के पत्र भरत ने नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष है। आचार्य अकलंकदेव का जैनन्याय को महनीय योगदान है उनका प्रभावक व्यक्तित्व एंव कृतित्व जन-जन के लिए आदर्श एवं प्रेरणाप्रद है। उनके साहित्य के अध्ययन के प्रति हमें समर्पित होना चाहिए। पं० शिवचरण लाल मैनपुरी.ने वस्तु स्वरूप को जानने हेतु निश्चय एवं व्यवहारनय की आवश्यकता का सरल एवं सरस ढ़ग से प्रस्तुत कर श्रावकों को मन्त्रमुग्ध कर दिया। "भट्ट अकलंकदेव की तर्क विदगधता” विषय पर डॉ० जयकुमार जैन महामंत्री अ० भा० दि० जैन शास्त्री परिषद् मुजफ्फरनगर ने आलेख प्रस्तुत करते हुए कहा कि अकलंकदेव ने अकाट्य तर्कों के माध्य से जैन धर्म की सुरक्षा की। प्रमाण के क्षेत्र में वे उसी तरह हैं .जैसे उपमा के क्षेत्र में कालिदास। मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए दिल्ली समाज के सुप्रसिद्ध नेता चक्रेशकुमार जैन कहा कि गुरुओं के दर्शन से हमें अपूर्व शान्ति मिलती है एवं संगोष्ठी की सफलता की मंगलकामना की। . अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो० बी०बी० रानाडे ने कहा कि पू० उपाध्याय ज्ञानसागर महाराज के चरणों के स्पर्श से शाहपुर सांस्कृतिक केन्द्र बन गया है। जैनत्व मनुष्यत्व का प्रतीक है। आ० अकलंकदेव ने अपना सम्पूर्ण साहित्य मानव जाति के कल्याण के लिए लिखा। स्व० पं० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य का भाव विहल होकर स्मरण करते हुए प्रो० रानाडे ने दर्शन के क्षेत्र में उनके द्वारा किये गये कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। अन्त में संयोजक द्वारा आभार ज्ञापन करने के बाद जिनवाणी की स्तुति एवं उपाध्याय श्री के जयघोष के साथ प्रथम सत्र का समापन हुआ। द्वितीय सत्र संगोष्टी का द्वितीय सत्र पू० उपाध्याय ज्ञानसागर महाराज की मौन उपस्थिति के बीच डॉ कमलेश कुमार (वाराणसी) के मंगलाचरण से प्रारंभ हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो० उदयचन्द जैन सर्वदर्शनाचार्य वाराणसी एवं संयोजन डॉ० जयकुमार जैन (मुजफ्फरनगर) ने किया। इस सत्र में विद्वानों ने आ० अकलंकदेव द्वार प्रणीत साहित्य के वैशिष्ट्य पर गवेषणात्मक आलेख प्रस्तुत किया
SR No.002233
Book TitleJain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1999
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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