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जैन-न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान
षष्ठ प्रस्ताव
चतुर्थ प्रस्ताव - अन्यथानुपपत्ति रूप हेतु, अनुपलब्धि के भेद। 112.
कारिकायें। पञ्चम प्रस्ताव - हेत्वाभास विषयक विवेचन, अंतर्व्याप्ति का वर्णन।
10% कारिकायें। ___- वाद, जय, पराजय आदि शास्त्रार्थ विषयक विवेचन।
102 कारिकायें। सप्तम प्रस्ताव - प्रवचन का लक्षण, सर्वज्ञता की सिद्धि, अपौरुषेयता का
खण्डन। 10 कारिकायें। अष्टम प्रस्ताव - सप्तभंगी एवं नैगमादि नयों का वर्णन। 13 कारिकायें। नवम प्रस्ताव - प्रमाण, नय एवं निक्षेप का निर्वहण। 12 कारिकायें। ५. तत्त्वार्थवार्तिक
आचार्य उमास्वामिकृत तत्त्वार्थसूत्र संस्कृत में रचित सर्वप्रथम जैन रचना एवं आद्य सूत्र-ग्रन्थ है। अकलंकदेवकृत तत्त्वार्थवार्तिक इसी तत्त्वार्थसूत्र की गहन व्याख्या है। यह व्याख्या वार्तिक रूप में लिखी गई है, अतः इसे तत्त्वार्थवार्तिक संज्ञा स्वयं भट्ट अकलकदेव ने 'वक्ष्ये तत्त्वार्थवार्तिकम्' कहकर दी है। इसकी यह विशेषता है कि पहले तत्त्वार्थसूत्र पर अकलंकदेव ने वार्तिक लिखे हैं तथा वार्तिकों पर पुनः भाष्य भी लिखा है। इसका मूल आधार आचार्य पूज्यपाद द्वारा लिखित तत्वार्थसूत्र की टीका सर्वार्थसिद्धि है। अतः सर्वार्थसिद्धि के विशिष्ट वाक्यों को भी वार्तिक बनाया गया है तथा नवीन वार्तिकों की रचना भी इसमें की गई है। जब-जब अकलंकदेव ने दार्शनिक विषयों वाले सूत्रों की व्याख्या की है, तब-तब 'अनेकान्तात्' वार्तिक जरूर दिया है। इस प्रकार उन्होंने अनेकान्तवाद की प्रतिष्ठा में कोई कसर नहीं छोड़ी है। .
तत्त्वार्थसूत्र की व्याख्या होने के कारण तत्त्वार्थवार्तिक भी. तत्त्वार्थसूत्र की तरह ही दस अध्यायों में विभक्त है। तत्त्वार्थवार्तिक में आचार्य अकलंकदेव ने